भारत रत्न डॉ. बीआर अंबेडकर की 132 वीं जन्म जयंती का समारोह का हुआ आयोजन।
ब्यूरो चीफ़ शहाबुद्दीन अहमद
बेतिया, बिहार।
प्रति वर्ष की भांति इस वर्ष भी, विश्व बिभुति विश्व मानव युग प्रवर्तक बाबा साहेब भारतरत्न डॉ बी आर अंबेडकर की 125 वी जन्म जयंती का समारोह का आयोजन,जिला मुख्यालय के समाहरणालय के मुख्य द्वार पर जिला पदाधिकारी द्वारा बाबासाहेब की आदमकद प्रतिमा पर पुष्पमाला चढ़ाकर इसकी शुरुआत की,जिले भर से आए हुए सभी प्रतिनिधियों के द्वारा इसमें प्रबुद्धभारती,पंचशील बौद्ध विहार,भारतीय बौद्ध महासभा, भीम बुद्ध,नीति तथा तमाम राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधियों के पुष्पांजलि, भावअंजलि से कार्यक्रम सराबोर रहा।प्रबुद्ध भारती के राष्ट्रीय संयोजक, मिसाइल इंजीनियर, विजय कश्यप ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी का हवाला देते हुए यह जानकारी भी दी कि विश्व के 10 युग परिवर्तन में प्रथम चार भारत के हैं, और उसमें चौथे हैं,इस युग के युग प्रवर्तक बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर, इन्होंने संविधान के निर्माण में ड्राफ्टिंग कमिटी के चेयरमैन होने के नाते एक अच्छी भूमिका निभाई। संपूर्ण देश एवं मानवता के लिए एक संविधान देने में अपना योगदान दिया। बाबासाहेब ने विपरीत परिस्थितियों में अभावग्रस्त परिवार में जन्म लेकर भी 32 डिग्रियों को हासिल किया,अपने थेसिस के द्वारा प्रॉब्लम ऑफ रुपीस एंड सलूशन के माध्यम से इंग्लैंड के यंग हिल्टन कमीशन से अपनी राय साझा करके रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को 1 अप्रैल 1935 में जन्म दिया,महिलाओं, पिछड़े समाज के लिए संविधान समिति में संघर्ष करते-करते उन्होंने अपनी प्रतिबद्धता जाहिर करने के लिए अपने कानून मंत्री पद से भी इस्तीफा दे दिया,एक अकेले व्यक्ति के रूप में उभरे, जिन्होंने बिना चुनाव जीते उन्होंने वह सब कुछ कर दिया जो अब तक चुनाव जीतकर तमाम राष्ट्रों ने नहीं किया था। बाबासाहेब ने पूरी दुनिया को देश के लिए जीने का एक मार्ग प्रशस्त किया,देश के विकास में कोई भी चीज बाधक नहीं होगी इस बात का एक मार्ग प्रशस्त किया,संविधान समिति में दूसरे लोगों में पिछड़े और दलित समाज के प्रतिनिधि अत्यल्प थे, उन्होंने सारे समाज के हित में आर्टिकल 15,340,41,42 में उन्होंने सबके अधिकार सुनिश्चित किए,उन लोगों के उस समय के तमाम लोगों के विरोध के बावजूद भी उन्होंने महिलाओं को शिक्षा और मत का अधिकार दिया,मात्र 65 वर्ष की अल्पायु में उन्होंने जितने काम किए उतनी आज तक के तमाम राजनेताओं ने मिलकर नहीं किया होगा।। उन्होंने धर्म का परित्याग कर धम शरण लिया,बुद्धि को 14 अक्टूबर 1956 को ग्रहण कर मात्र 6 माह तक बुद्ध धर्म का प्रचार प्रसार करने के बाद 6 दिसंबर 1956 को अपने चंपारण की धरती में ही यशोधरा स्थान पर चिर निद्रा में लीन हो गए।