Tranding
Thu, 03 Jul 2025 12:27 PM
धार्मिक / Jul 02, 2025

इस्लाम जिंदा होता है हर कर्बला के बाद।

मस्जिदों में जारी ‘जिक्रे शुहदाए कर्बला’ महफिल

भारत समाचार एजेंसी

सैय्यद फरहान अहमद

गोरखपुर, उत्तर प्रदेश।

छठवीं मुहर्रम को मस्जिदों व घरों में ‘जिक्रे शुहदाए कर्बला’ महफिलों का दौर जारी रहा। कुरआन ख्वानी हुई। जाफरा बाजार स्थित कर्बला में अकीदतमंद फातिहा ख्वानी के लिए पहुंचे। नखास, जाफरा बाजार, मियां बाजार में हलवा पराठा खूब बिक रहा है। मुस्लिम बाहुल्य मोहल्ले व जुलूस में लोग ऊंट की सवारी करते नजर आ रहे हैं। गौसे आजम फाउंडेशन ने कई जगहों पर लंगरे हुसैनी बांटा। लंगर बांटने में समीर अली, मो. फैज, वसीम अहमद, तौसीफ खान, मो. शारिक, सैयद शहाबुद्दीन, रियाज अहमद, अली गजनफर शाह, मो. जैद कादरी, अमान अहमद, अहसन खान, मो. शारिक, मो. जैद, नूर मुहम्मद दानिश, रेयाज अहमद, मो. अरीब आदि शामिल रहे। अल कलम एसोसिएशन की ओर से हाफिज रहमत अली निजामी ने भी लंगरे हुसैनी बांटा।

तुर्कमानपुर में लगी पोस्टर प्रदर्शनी 'हमारे हैं हुसैन'

छठवीं मुहर्रम को रशीद‌ मंजिल तुर्कमानपुर के पास पोस्टर प्रदर्शनी 'हमारे हैं हुसैन' लगाई। इमाम हुसैन रदियल्लाहु अन्हु की जिंदगी व शिक्षाओं पर आधारित पर्चा बांटा गया। प्रदर्शनी में नायब काजी मुफ्ती मुहम्मद अजहर शम्सी ने कहा कि इमाम हुसैन ने शहादत देकर इस्लाम धर्म व मानवता को बचा लिया। इमाम हुसैन कल भी जिंदा थे, आज भी जिंदा हैं और सुबह कयामत तक जिंदा रहेंगे। इमाम हुसैन जिंदा हैं हमारी महफिल में, इमाम हुसैन जिंदा हैं हमारी नमाजों में, इमाम हुसैन जिदा हैं हमारी अजानों में, इमाम हुसैन जिंदा हैं हमारी सुबह में, हमारी शामों में। कत्ले हुसैन असल में मरगे यजीद है, इस्लाम जिंदा होता है हर कर्बला के बाद।

महफिलों में बयां हुई शहादत की दास्तान।

इस्लाम चक जाफरा बाजार में महफिल जिक्रे शुहदाए कर्बला के तहत हाफिज रहमत अली निजामी ने कहा कि इंसानियत और इस्लाम धर्म को बचाने के लिए पैगंबरे इस्लाम हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के नवासे हजरत इमाम हुसैन ने अपने कुनबे और साथियों की कुर्बानी कर्बला के मैदान में दी।

गौसिया मस्जिद छोटे काजीपुर में मौलाना मुहम्मद अहमद ने कहा कि कर्बला के मैदान में हजरत फातिमा के दुलारे इमाम हुसैन जैसे ही फर्शे जमीन पर आए कायनात का सीना दहल गया। इमामे हुसैन को कर्बला के तपते हुए रेगिस्तान पर इस्लाम धर्म की हिफाजत के लिए तीन दिन व रात भूखा प्यासा रहना पड़ा। अपने भतीजे हजरत कासिम की लाश उठानी पड़ी। हजरत जैनब के लाल का गम बर्दाश्त करना पड़ा। छह माह के नन्हें हजरत अली असगर की सूखी जुबान देखनी पड़ी। हजरत अली अकबर की जवानी को खाक व खून में देखना पड़ा। हजरत अब्बास के कटे बाजू देखने पड़े, फिर भी हजरत इमाम हुसैन ने इस्लाम धर्म को बुलंद करने के लिए सब्र का दामन नहीं छोड़ा।

मदीना मस्जिद रेती चौक में मुफ्ती मेराज अहमद ने कहा कि हजरत इमाम हुसैन का काफिला 61 हिजरी को कर्बला के तपते हुए रेगिस्तान में पहुंचा। इस काफिले के हर शख्स को पता था कि इस रेगिस्तान में भी उन्हे चैन नहीं मिलने वाला और आने वाले दिनों में उन्हें और अधिक परेशानियां बर्दाश्त करनी होंगी। बावजूद इसके सबके इरादे मजबूत थे। अमन और इंसानियत के ‘मसीहा’ का यह काफिला जिस वक्त धीरे-धीरे कर्बला के लिए बढ़ रहा था, रास्ते में पड़ने वाले हर शहर और कूचे में जुल्म और प्यार के फर्क को दुनिया को बताते चल रहा था। अंत में दरूदो सलाम पढ़कर मुल्क में अमन व शांति की दुआ मांगी गई।

Jr. Seraj Ahmad Quraishi
1

Leave a comment

logo

Follow Us:

Flickr Photos

© Copyright All rights reserved by Bebaak Sahafi 2025. SiteMap