आदिवासियों पर पुलिस बर्बरता की हो निष्पक्ष जांच : घुमरिया
दोषी अधिकारियों को निलंबित करने, पीड़ित व निर्दोष ग्रामीणों को क्षतिपूर्ति राशि देने व निर्दोष लोगों की रिहाई की मांग
वसीम अकरम कुरैशी
जयपुर, राजस्थान
देवली उनियारा विधानसभा क्षेत्र के समरावता गांव में हुए मतदान के दौरान व उसी दिन रात में पुलिस प्रशासन द्वारा बेगुनाह आदिवासी महिलाओं, बच्चों व पुरुषों पर किए गए अमानवीय अत्याचार की निष्पक्ष जांच तथा दोषी अधिकारियों को तुरंत निलंबित करने एवं पीड़ित व निर्दोष ग्रामीणों को क्षतिपूर्ति राशि देने तथा बेगुनाहों की रिहाई की मांग ने जोर पकड़ा है। इस संदर्भ में अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद के प्रदेश अध्यक्ष केसी घुमरिया ने एक प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करते हुए क्षेत्र का दौरा किया तथा पीड़ितों की सुध ली। उन्होंने पाया कि 13 नवंबर को देवली उनियारा विधानसभा क्षेत्र के समरावता मतदान केंद्र पर हुए उपद्रव के बाद पुलिस ने क्षेत्र में निर्दोष लोगों के साथ कुरूरता की। उनके साथ मारपीट की गई तथा पुलिसकर्मी जबरन लोगों के घरों में घुसकर उनके वाहनों, घरों में तोड़फोड़ की। सामान को खुर्द बुर्द किया तथा पुलिस के डर से बचने के लिए लोग अपने घरों में छतों पर चढ गए तो पुलिस ने वहां भी दबिश दी और उन्हें ऊपर से कूदने पर मजबूर किया। जिसके कारण कई लोगों के हाथ, पैर, सिर में गंभीर चोटें आई। जब वह ऊपर से घास और मवेशियों के चारे पर कूदे तो पुलिस ने उस चारे में आग लगा दी, जिसके कारण मवेशी जल गए और ग्रामीणों को भारी नुकसान हुआ।घुमरिया ने बताया कि इसी माह 13 नवंबर को समरावता गांव के नागरिक मतदान केंद्र का शांतिपूर्ण तरीके से कुछ लोग बहिष्कार कर रहे थे और अपनी वाजिब संवैधानिक मांग की और सरकार का अपनी मांगों पर ध्यान आकर्षण करने का प्रयास कर रहे थे। उनकी मांग थी कि उनका तहसील मुख्यालय उनियारा में रखा जाए, जो कि उनके गांव से 15 किलोमीटर की दूरी पर है, जबकि मुख्यालय देवली कर दिया गया, जो वहां से 86 किलोमीटर दूर है। इस विषय में समरावता गांव के लोगों ने बार-बार ज्ञापन देकर एसडीएम तथा कलेक्टर को उनकी वाजिब मांग को पूरा करने का आग्रह किया था, लेकिन प्रशासन द्वारा इस पर ध्यान नहीं दिया गया। मतदान के 15 दिन पहले ही ग्रामीणों ने प्रशासन को चेतावनी दी थी कि हमारी मांग जो कि उनियारा तहसील को हेड क्वार्टर बनाने की है उसको पूरा नहीं किया तो वह मतदान का बहिष्कार करेंगे। इसी क्रम में मतदान के दिन शांतिपूर्ण धरने पर बैठे ग्रामीण मतदान का बहिष्कार कर रहे थे। मतदान नहीं होता देखकर मौके पर तैनात आरएएस अधिकारी अमित चौधरी ने कुछ मतदाताओं पर दबाव बनाकर बलपूर्वक मतदान करवाया। जिसमें आंगनबाड़ी कार्यकर्ता चित्रा मीणा उनके पति जो कि विकलांग है, उसे जबरदस्ती मतदान करवाया। चित्र मीना से 17. 11.24 को समरावता में हमारे संगठन की टीम ने बातचीत करके पता लगाया कि उन पर एसडीएम अमित चौधरी द्वारा यह कहकर दबाव डाला गया कि आप तो सरकारी कर्मचारी है, आपको सरकार का साथ देना चाहिए नहीं तो उनको नौकरी से बर्खास्त कर दिया जाएगा। इस दौरान निर्दलीय प्रत्याशी नरेश मीणा वहां पहुंच गए और धरना स्थल पर ग्रामीणों के साथ मौजूद थे, जब नरेश मीणा को यह पता चला कि एसडीएम अमित चौधरी द्वारा ग्रामीणों पर दबाव बनाकर जबरदस्ती बलपूर्वक मतदान करवाया जा रहा है तो वह यह देखकर दौड़कर मतदान केंद्र की और अंदर गए जहां उन्हें अंदर जाने से रोका जा रहा था, कानूनन एक प्रत्याशी को मतदान केंद्र के अंदर जाकर देखने का अधिकार होता है और उसे रोकने का प्रयास तथा दबाव बनाकर मतदान करने की बात को लेकर एसडीएम अमित चौधरी और नरेश मीणा के बीच हाथापाई हो गई। घुमरिया ने कहा कि अधिकारी के थप्पड़ मारना उचित नहीं ठहराए जा सकता, लेकिन घटना के बाद निर्दोष ग्रामीणों के साथ पुलिस ने जो अत्याचार व कुरता की वह मानवता की हदें पार कर गई जो कि कानूनी तौर पर गलत है। बता दें कि मतदान के बाद ग्राम वासी और नरेश मीणा समरावता गांव में ही ठहरे हुए थे और वहां पर कुछ मीना कलाकारों द्वारा नाच गाने का कार्यक्रम आयोजित किया था। मनोरंजन के लिए सैकड़ों ग्रामीण महिला, पुरुष, बच्चे एकत्रित थे। गांव में रोड पर तालाब के किनारे स्टेज तैयार किया गया था और सामने दो मंजिला मकान में तथा छत पर महिला, पुरुष और बच्चे नाच गाना देखने के लिए मौजूद थे। ग्रामीणों के बताएं अनुसार लगभग रात 9:00 बजे अचानक प्रशासन द्वारा लाइट काट दी गई और पुलिस फोर्स द्वारा थाना अधिकारी डिग्गी ओम प्रकाश चौधरी के नेतृत्व में बर्बरता पूर्ण तरीके से ग्रामीणों पर लाठी चार्ज किया गया। आंसू गैस के गोले छोड़े गए और स्टेज व तालाब के पास में तथा दो मंजिला मकान की छत पर मौजूद लोगों की कुरतापूर्ण तरीके से पिटाई की गई। जिसमें सैकड़ों लोगों के गंभीर चोटे आई। दो मंजिला मकान मालिक और आसपास के मकान वालों से बातचीत की उससे जो दृश्य देखने और समझने में आया वह दिल दहलाने वाला था। मकान के पोर्च में खड़ी गाड़ी पूरी तरीके से क्षतिग्रस्त की गई। चारों तरफ से मकान के सारे शीशे तोड़ दिए गए और मकान के अंदर रखा सामान, ज्वेलरी इत्यादि को तहस-नहस कर दिया गया। मकान की दीवारों पर जगह-जगह खून के धब्बे लगे थे। यह पुलिस की बर्बरता एवं क्रूरता दर्शा रहे थे। पास के मकान के टीन शेड टूटे थे जो कि ग्रामीणों द्वारा जान बचाने के लिए कूदने से टूटे। मकान के पास सूखी घास की बगैर ढेर लगा हुआ था, पुलिस की मार से बचने के लिए लोग दो मंजिला मकान के छत से घास की बगर ढेर पर कूद रहे थे, तो पुलिस ने ढेर में आग लगा दी, जिसके कारण पूरी घास जल गई और साथ में मवेशी जल गए, कई झुलस गए।अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद के प्रदेश अध्यक्ष केसी घुमरिया ने इस संदर्भ में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, मुख्यमंत्री सहित कई विभागों के जिम्मेदार अधिकारियों एवं प्रतिनिधियों को ज्ञापन देकर मामले की निष्पक्ष व उच्च स्तरीय न्यायिक जांच की मांग की है।वहीं दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करते हुए सीबीआई जांच की मांग की है। घुमरिया ने कहा कि इस प्रकरण में जिला कलेक्टर व पुलिस अधीक्षक की लापरवाही सामने आई है। यदि दोनों आधिकारी समय रहते कार्रवाई करते तो इस दुर्घटना को टाला जा सकता था। उन्होंने जिला कलेक्टर व पुलिस अधीक्षक को निलंबित कर विभागीय जांच व हाईकोर्ट के जज से न्यायिक जांच की मांग की है। साथ ही पुलिस अधिकारियों पर एससी,एसटी एक्ट व अन्य आपराधिक धाराओं में मुकदमा दर्ज कर कार्रवाई की मांग की है।