जिस धराधाम में यज्ञ आदि का अनुष्ठान हो, वहां की धरती अत्यंत ही पवित्र होती है:- स्वामी ईश्वर दास ब्रह्मचारी
रिपोर्ट - -धनंजय शर्मा
बेल्थरारोड (बलिया)।
अद्वैत शिवशक्ति परमधाम डूहां मठ के परिवज्रकाचार्य स्वामी ईश्वरदास ब्रह्मचारी ने कहा कि भगवान भक्तों के दुःख देखकर पृथ्बी पर अवतरण लेते हैं। यह भगवान श्रीराम व कृष्ण का देश है। इनका जन्म विदेशों में नही भारत में हुआ है। सत्संग करने से अच्छी ऊंचाई जाने को रास्ता प्राप्त होता है। इससे हाथ व सिर दोनों ऊंचा हो जाता है।
उन्होने नगर के चौकियां मोड़ पर पंच चल रही कुण्डीय 9 दिवसीय अद्वैत शिव शक्ति महायज्ञ में 7वे दिन की कथा में कहा कि जो एक भाव में रहता है वहीं सास्वत है। जो भगवान की आराधना, सत्संग, यज्ञ करने से ही सम्भव है। ज्ञानधरा, विज्ञानधरा, ऐतिहासिक धरा में बह रहे थे। प्रेम की पराकाष्ठा हो जाय वहीं भक्ति का प्राकट्य हो जाता है। अखण्ड प्रेम का नाम ही है भक्ति। ऐसे ही प्रयास से परमात्मा में परमपद परमात्मा के चरण में पहुंच जाता है। अनेक प्रकार के गुरुजनों का उदय होता है तो संत महात्माओं का मिलन होता है। और उनकी अमृतबाणी का रसपान करते हैं। और उनके पास बैठने से अनुुभव होता है कि पूज्य महाराज की बाणी बहुमूल्य है। उनका ब्यवहार, चरित्र, उदारता, बैराग्य, सत्यता, ज्ञान, विज्ञान, भक्ति अनुपम है। ऐसे में गुरुदेव का ज्ञान जहां मुंख मण्डल प्रसन्न चित्त मुद्रा में बरसेगी, वह अलौकिक होगी। ऐसी भक्ति माता गंगा के तरंगों की समान होती है। यहां शिव शक्ति परमधाम का दृष्य प्रदर्शित किया गया है। परम शिवशक्ति परमधाम में विराजमान है। इसे पारदर्शी ज्ञान पुरुष ही बता पाएगें।
कहा कि यहां नौ दिन की पंचकुण्डीय महायज्ञ का कार्यक्रम चल रहा है। प्रचण्ड गर्मी एवं प्रतिकूल परिस्थितियों के बाद भी निर्वाध गति से भगवान का काम होता जा रहा है। जिस धराधाम में यज्ञ आदि का अनुष्ठान हो, वहां की धरती अत्यन्त ही पवित्र होगी। कितना भी अध्ययन कर ले, कितना भी वेद आदि का ज्ञान प्राप्त कर लें, भगवान की श्री चरणों में प्रेम शब्द नही हो पा रहा है वहां प्रत्येक कार्य निर्रथक हो जायेगा। परमेश्वर की आराधना देवी देवताओं सहित की जा रही है।
जहां भक्ति है वहीं परमात्मा है। लोग कहते है परमात्मा आते नही। हम जब प्रेम में दीवाना हो जाते है जब दीवानगी परमात्मा के नाम चढ़ जाती है। हमे भगवान को अर्पण करके ही भोजन करनी चाहिए। प्रह्लाद को बचाने के लिए भगवान नरसिंह के रुप में आकर बचाते हैं। जब कि उसे अपने पिता से असहनीय प्रताड़ना मिलती जा रही थी। भगवान के नाम जपने में शालिनता होनी चाहिए। जिस दिन हमारा प्रेम भगवान में लीन हो जायेगा, परमात्मा साक्षात हमें दर्शन अवश्य देगें।
वृन्दाबन से पधारे प्रवीण कृष्ण जी महराज ने कहा कि प्रभु कहते है कि पत्ता, फूल, हाथी को मैंने बनाया है। जैसे एक मां अपने बच्चे की आंसू नही देख सकती ठीक उसी प्रकार परमात्मा हमें दुःखी कैसे देख सकता। कितना भी आप शरीर से प्रेम करें, किन्तु मरने के बाद वह शरीर किसी से बात नही करता। आत्मा तो अजर अमर है। वह कभी नही मरता। भाग्य नाम की कोई चीज नही होती, वह कर्म के अनुसार बनता और बिगड़ता है। कलियुग में आचार विचार संयम नही चल पाता। जो भी करे उसे परमात्मा से जोड़ कर करें। जो भी घर में खाने को बनता है उसे भोजन नही उसे प्रसाद बोलिये। जब वह भगवान को भोग लग जाता है तो वह प्रसाद बन जाता है। इस लिए मन को नियंत्रित कर सफल जीवन के लिए सदाचार जीवन हेतु शाकाहारी भोजन का ही प्रयोग करें।
वाराणसी से पधारे पंडित अनुज कुमार ओझा, मधुसूदन मिश्रा व नितिन मिश्रा ने संगीतमयी तीसरी भब्य गंगा आरती का कार्यक्रम रविवार को सम्पन्न किया। इसके पश्चात गुरु आरती, प्रसाद वितरण के साथ आयोजन सम्पन्न हुआ। फिर देर रात्रि तक महाप्रसाद ग्रहण करने के बाद कथा श्रोता अपने-अपने घरों को रवाना हुए। यश्र मण्डप की परिक्रमा नर-नारियों द्वारा अपने बच्चों संग नित्य प्रातः व शाम को किया जा रहा है।