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Wed, 18 Jun 2025 11:20 AM
धार्मिक / Feb 05, 2024

ऐसे हैं मेरे श्रीराम!

लेखक- निर्देश प्रजापति

शोधार्थी दिल्ली विश्वविद्यालय..

सनातन संस्कृति के आधार स्तंभ हैं श्रीराम! 

भव निधि के तारणहार हैं श्रीराम! 

आनंद के स्रोत निधि हैं श्रीराम! 

शत्रुत्व नहीं वरन् मित्रत्व- पुंज हैं श्रीराम! 

अहम् नहीं अपितु वयम् हैं श्रीराम!  

शील एवं मर्यादा के सिरमौर हैं श्रीराम!

पौरुष और पुरुषार्थ के शिरोमणि हैं श्रीराम!

लौकिक और अलौकिक जगत् के पालनहार हैं श्रीराम!

संपूर्ण विश्व के योजक हैं श्रीराम!

भारत के श्रीभास्वर हैं श्रीराम!

धर्म,जहाँ भारतीय संस्कृति की चिरंतनता एवं अक्षुण्णता का प्राणतत्व है,वहीं श्रीराम धर्म के प्रतिमूर्ति हैं। राम का राज यानी धर्म का राज; श्रीराम और धर्म एक दूसरे के पर्याय हैं।धर्म साध्य है और श्रीराम धर्म के साधक। राम से ही धर्म है और राम में ही मोक्ष।

आदि कवि महर्षि वाल्मीकि जी कहते हैं - "रामोविग्रहवान धर्म:।" यदि व्यक्ति और समाज रामधुन धारी होगा तो वह कभी भी किसी भी स्थिति परिस्थिति में धर्माविमुख नहीं जाएगा।धर्म शील व्यक्ति कभी भी किसी का अहित नहीं कर सकता। धर्मेतर व्यक्ति घातक होता है। जिसके अनगिनत उदाहरण हमारे भारतीय इतिहास में भरे पड़े हैं। श्रीराम लला की जन्मभूमि को ऐसे ही नराधम क्लीव और म्लेच्छों द्वारा विध्वंस कर दिया गया। किंतु पुनः धर्मनिष्ठ सनातनियों के संकल्प , तप एवं तपस्या, त्याग और आत्मदान से ५०० वर्षों की भीषण संघर्ष के बाद श्रीराम के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा संभव हो पायी है और हमारी खोई हुई प्रतिष्ठा तथा गरिमा प्राप्त हुई है।शताब्दियों (५०० वर्ष) के धर्म अधर्म संघर्ष का प्रतिफल है श्रीराम लला प्राण प्रतिष्ठा। यह प्राण प्रतिष्ठा हमारे कारसेवकों द्वारा किए गए भीष्म संकल्प की सिद्धि का प्रतिफल है जिसने पांच शताब्दियों का संघर्ष कर इसे अभीष्ट किया।

उक्ति भी है - यतो धर्म: ततो जय:। श्रीराम धर्म हैं और श्री विजय भी।

धर्मत्व का अनुशीलन जिस प्रकार मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जी ने किया है उससे ही भारतीय संस्कृति की गौरवमयी ख्याति लब्धित हुई है, इसमें किंचित भी अतिशयोक्ति नहीं है।  

रामराज की संकल्पना के महात्म्य की यह स्थापना है कि राम राज्य में चहुँ ओर सब प्रकार से प्राणी जगत् प्रकृति के नियमों से सुसज्जित होकर सुख शांति से युक्त था।समस्त चराचर प्राणियों में समरसता एवं बंधुत्व की बेजोड़ और अटूट आस्था विद्यमान थी।परस्पर विरोधी एवं विद्रोही स्वभाव के जीव भी मित्रत्व की अनूठी जोड़ में जूड़े रहते थे; शत्रुता, ईर्ष्या, द्वेष आदि का लेस मात्र का भी प्रभाव प्राणियों में नहीं था।सब ओर से , दैहिक, दैविक,भौतिक समृद्धि व्याप्त थी।किंचित् भी भय,अधर्म का मूल, आदि का अभाव था।वास्तव में रामराज में श्रीराम द्वारा अर्जित ,अनुशीलित धर्म का ही यशस्वी साम्राज्य प्रभावी रूप में फैला हुआ था,जिसके चुंबकीय क्षेत्र में जनमानस के साथ साथ अन्य प्राणी समूह भी श्रीराम को उर अंतस में रखकर धर्म यानी श्रीराम का अनुगमन और अनुपालन कर रहा था। निस्संदेह श्रीराम जन्मभूमि मंदिर की स्थापना रामराज्य के वैभव और ऐश्वर्य का आवाहन है। विश्व बंधुत्व का आवाहन है, सनातन शाश्वत का आवाहन है, सकल विश्व में समृद्धि और शांति हेतु धर्म-भूमि भारत की अनिवार्यता तथा एकमात्र विकल्प (जिसके ध्वजपताका के पीछे विश्व बंधुत्व साकार होगा) का आवाहन है। श्रीराम लला प्राण प्रतिष्ठा से पुनः धर्मनिष्ठ तत्वों, मूल्यों और आदर्शों का पुट समाज,व्यक्ति और प्राणी जगत् में अभ्यंतराद्भ्यंतर अभीष्ट होगा। धर्मानुराग की अनिवार्यता का प्रतिपादन करते हुए यह कहना समोचित है कि हर व्यक्ति में अपने धर्म के प्रति निष्ठा एवं समर्पित भाव होना चाहिए।व्यक्ति धर्मानुगामी है,इसकी पुष्टि व्यक्ति के धर्मानुरागी लक्षणों से ही हो सकती है। श्रीराम लला प्राण प्रतिष्ठा का साकार होना, ऐसे ही रामभक्तों, कारसेवकों और सनातनियों के धर्मानुराग का परिणाम है।

        विश्व वंदे,पुरुषोत्म श्री राम जी ने विश्व परिवार के मानव के प्रति मानवता को अपने धर्म का प्राण मानकर, स्वयं हिंदू होने के अनुराग की धार्मिक उद्घोषणा की। हिंदुत्व में ही शांति है, समरसता है।मेरा मानना है कि धर्म और धर्मानुराग के अभाव में मनुष्य और मनुष्यत्व के अस्तित्व एवं अस्मिता की कल्पना भी नहीं की जा सकती। आज हम भगवान श्रीराम के आदर्शों जैसे त्याग, स्नेह, पुरुषार्थ, समरसता, सहनशीलता, धैर्य,सेवाभाव, दयालुता आदि को अपनाकर ही एक आदर्श समाज की स्थापना कर सकते हैं जिसमें धर्म का स्थान सर्वोपरि और अनिवार्य रूप से सर्वोच्च हो। 

आज भी श्रीराम संपूर्ण विश्व के आराध्य और संबलदेव बने हुए हैं। जिनके आश्रय में संपूर्ण विश्व अपने को धन्य समझता है। श्रीराम लला प्राण प्रतिष्ठा के दिन की आभा पूरे विश्व में (मॉरीशस, त्रिनिदाद, सूरीनाम , कंबोडिया, इंडोनेशिया, वियतनाम, थाइलैंड, साउथ कोरिया , जापान , श्रीलंका, नेपाल,इंग्लैंड, फ्रांस , अमेरिका , लगभग १५० देशों के मतावलंबी इत्यादि) कितने हर्ष और उल्लास के साथ दिखाई दिया वह अविस्मरणीय और न भूतो न भविष्यत है। पूरे विश्व में स्वाभाविक तथा स्वत: स्फूर्त रूप में श्रद्धा और आस्था के साथ लोगों ने स्वयं को श्रीराम के प्रति आत्मीयता का उद्घोष किया। वास्तव में श्रीराम के ध्वज तले भारत के पुनः विश्व गुरु बनने तथा विश्व बंधुत्व के अभियान का यह एक संकेत है।

हाल ही में माननीय प्रधानमंत्री श्रीयुत मोदी जी के कुशल नेतृत्व और प्रबंधन में जी२० की अध्यक्षता भारत में की गई, जिसमें वसुधैव कुटुम्बकम् ( विश्व एक परिवार है) , सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे संतु निरामया की संकल्पना पर जोर दिया गया। इस संकल्पना के संदर्भ में श्रीराम लला प्राण प्रतिष्ठा विश्व में प्रथम कदम के रूप में देखा जा रहा है। श्रीराम भारतीय संस्कृति के साक्षात् श्रीविग्रह हैं।यह प्राण प्रतिष्ठा वास्तव में श्रीरामत्व की प्राण प्रतिष्ठा है, मूल्यों की प्रतिष्ठा है , सर्वहित सर्वार्थ सिद्धि की प्रतिष्ठा है। श्रीराम की दिव्यता के झलक को विश्व के तथाकथित प्रमुख समाचार पत्रों (वाशिंगटन पोस्ट, द गार्जियन, न्यूयॉर्क टाइम्स, बीबीसी आदि) में प्रमुखता से प्रकाशित प्रकट किया ,जो सदियों से श्रीराम पर प्रश्न चिह्न लगाते रहे वो भी अपने को श्रीराममय कर सदियों के पाप से मुक्त हो गये। मेरे श्रीराम ऐसे ही हैं। उनका प्रताप ही ऐसा है।

राम काजु कीन्हे बिनु मोहि कहां बिश्राम को चरितार्थ करने वाले तथा हम भारतीयों को, रामभक्तों को उनका गौरव दिलाने का महत् कार्य परम तपस्वी माननीय प्रधानमंत्री श्रीयुत मोदी जी और साधुत्व के श्रीविग्रह माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ महाराज जी किया जिनका आभार दिग्दिगंत तक भारत ही नहीं अपितु विश्व भी करता रहेगा। श्रीराम के कृपा प्राप्त कर श्रीराम लला की छवि चित्र को बनाने वाले श्री सुनिल कुमार विश्वकर्मा जी और उसे मूर्ति रूप में स्थापित करने वाले श्री अरुण योगीराज जी दोनों श्रीराम की वानर सेना के परम साधक शिल्पकार नल और नील की भांति ही अमर रहेंगे।

कहने और लिखने को तो बहुत कुछ है। लेकिन श्रीराम को पूर्णता में कब किसी ने कह पाया। वे तो आदि हैं अंत हैं और अनंत भी हैं। उनके प्रति आत्मीयता और भक्तिभाव संपूर्ण विश्व में फैलती रहे, उनके द्वारा स्थापित मूल्यों का व्यापक प्रचार-प्रसार हो ,राष्ट्र और समाज उन मूल्यों का अनुगमन अनुसरण करता रहे, श्रीराम के श्रीचरणों का प्रसाद समस्त प्राणी जगत् को नव ऊर्जा प्रदान करे।ऐसा आशीर्वाद हमारे इष्ट पालनहार श्रीराम दें।

Karunakar Ram Tripathi
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