कई जन्मों के पापों नष्ट करती है जन्माष्टमी - आचार्य चक्रेश
संत कबीरनगर, उत्तर प्रदेश।
खलीलाबाद में आचार्य चक्रेश मिश्र ने कहा कि जन्माष्टमी कई जन्मों के पापों को नष्ट करता है जन्माष्टमी व्रत कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि रोहिणी नअव की मध्यरात्रि को मनाया जाता है। द्वापर युग में प्रभु श्री कृष्ण ने रोहिणी नक्षत्र में जन्म लिया उसका मुख्य कारण उनका चन्द्रवंशी होना । उनके पूर्वज थे। रोहिणी चंद्रदेव थे। चन्द्रमा की पत्नी एवं नाव भी है। भगवान्कुश्री कृष्ण रोहिणी नअल भेजन्म लिये। बुधवार का दिन भी इसलिये क्या बुधदेव चन्द्रमा के पुल हैं। और प्रभु का नाम कृष्ण इसलिए पड़ा क्यो कि वर्ग काला था और उनका ये नाम महर्षि गर्ग ने रखा था। प्रभुश्री कृष्ण का मतलब है जो चराचर जगत के सभी प्राणियों को अपनी ओर आकर्षित करता है। इसलिए सृष्टी का कण-कण भगवान कृष्ण की ओर आकर्षित करता है। प्रभु अकेले है जो सोल्ट कलाओं से परिपूर्ण परमपुरुष है। इसलिए सृष्टि के समस्त स्वरूप रंग
और आकार प्रकार प्रभु श्री कृष्ण मे समाये हुये है।. सनातन धर्म में जन्माष्टमी पर्व का विशेष क्योकि सनातन संस्कृति की अनतारी परम्पर) में कृष्ण अकेले है जो दुखो के महासागर मे हँसते-गाते नाचते दीप की तरह है। उत्सव धर्मिता भारता की सनातन परम्परा है। उत्सव भारतीय जनमानस की जीवन शैली का अहम हिस्सा है और प्रभु की समस्त लीलाओं यानी जन्म से लेकर देह विसर्जय तक प्रेम और उत्सव पर आधारित है