विकास का ढिंढोरा पीट रहे नीतीश सरकार का सच।
20 सालों से जर्जर बाराचट्टी विधानसभा क्षेत्र के पांच सड़कों का नहीं हो सका कायाकल्प।
सत्ता व विपक्षी पार्टियों केआश्वासन का घूंट पीते रहे लोग।
रिपोर्ट:विनोद विरोधी
गया, बिहार।
सूबे के मुखिया यानी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सुशासन व विकास के बदौलत केंद्र की सर्वोच्च कुर्सी हथियाने की कवायद में जुटे हैं। लेकिन सूबे की हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। सूबे के अति महत्वपूर्ण जिलों में मगध का नाम बड़े ही गर्व से लिया जाता रहा है। पिछले 2019 के लोकसभा चुनाव में इनके ही दल के टिकट पर धरती की बेटी कहलाने वाली दिवंगत भगवती देवी के पुत्र विजय मांझी को संसद का प्रतिनिधित्व करने के लिए दिल्ली भेजा गया। गृह जिला होने के नाते इसे लोगों की काफी उम्मीदें व आशाएं रही है। खासकर जिले के बाराचट्टी विधानसभा क्षेत्र के लोगों का, जिन्होंने तमाम जाति, धर्म व दलगत भावना को भुलाकर इन्हें जीत का सेहरा पहनाया था। किंतु यहां के मतदाताओं के आशाओं पर शीघ्र ही पानी फिर गया है ।जिसका परिणाम है कि नीतिश सरकार की सुशासन की भी पोल खुल गई है।विडंबना है कि बाराचट्टी विधानसभा क्षेत्र के पांच अति महत्वपूर्ण सड़कों की स्थिति काफी जर्जर बनी है।इनमें बाराचट्टी से मोहनपुर प्रखंड मुख्यालय होते हुए बोधगया जाने वाली सड़क, बाराचट्टी प्रखंड मुख्यालय से बुमुआर होते हुए लाडू तक जाने वाली सड़क, बाराडीह(बाराचट्टी)से मनफर आवासीय उच्च विद्यालय जाने वाली सड़क ,जीटी रोड सुलेबट्टा से शर्मा बाजार होते हुए चौआरी तक जाने वाली सड़क तथा गजरागढ़ बाईपास सड़क शामिल है। इन पांचो सड़कों का लगाव बाराचट्टी व मोहनपुर प्रखंड मुख्यालय से है और स्थानीय सांसद विजय कुमार मांझी का पैतृक आवास भी यहीं पर है। बावजूद इन जर्जर सड़कों की निर्माण के प्रति संसद ने कभी सुध नहीं ली है। स्थानीय लोगों द्वारा लगातार उच्च अधिकारियों समेत अन्य जनप्रतिनिधियों को अवगत कराने के बावजूद इस ओर किसी का ध्यान नहीं है। लोगों की शिकायत है कि इस संबंध में कोई बात होती है तो सीधे कहा जाता है कि इन सड़कों का डीपीआर तैयार है, बस शीघ्र ही काम शुरू होगा। लेकिन यह सुनते-सुनते लोगों को कान पक गए हैं।विडम्बना यह भी है कि इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व पूर्व सीएम व हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के सुप्रीमो जीतनराम मांझी का भी रहा है और फिलवक्त इनके ही समधिन ज्योति मांझी वर्तमान में यहां के विधायिका भी हैं, लेकिन इनकी घोषणाएं व आश्वासन भी कोरा साबित हो रहा है। इसके अलावा इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व जिला परिषद उपाध्यक्ष डॉ शीतल प्रसाद यादव का भी है। लेकिन उनसे भी कोई ज्यादा उम्मीद नहीं है।सारे के सारे लोग यहां के मतदाताओं को अपना वोट बैंक समझते हैं और ठगने का काम करते हैं ।स्थानीय लोगों का कहना है कि जर्जर सड़कों के निर्माण को लेकर आंदोलन भी किए गए ।कुछ क्षेत्रों में वोट का बहिष्कार भी किया गया। लेकिन इसका भी कोई असर नहीं हुआ है। सवाल है कि यहां जीत कर जाने वाले प्रतिनिधि क्या महज सदन में गिनती के हाथ उठाने वाले हैं या कोई काम के भी ?गौरतलब है कि लोकसभा 2024 का आसन्न चुनाव का डंका भी चंद माह के भीतर बजना है। ऐसे में लोगों का आक्रोश जायज है। ना तो सत्ता पक्ष का ध्यान इन सड़कों के निर्माण के प्रति है और ना ही विपक्षी दलों का ।ऐसे में सुशासन व विकास का दम भरने वाले नीतीश सरकार के लिए मुसीबत खड़ा होना लाजमी है।