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Wed, 18 Jun 2025 01:07 PM

जश्न-ए-आज़ादी पर मकतब इस्लामियात में शान से लहराया तिरंगा, हुई संगोष्ठी।

अल्लामा फज़ले हक़ खैराबादी को किया याद

सैय्यद फरहान अहमद

गोरखपुर, उत्तर प्रदेश।

स्वतंत्रता दिवस का जश्न मकतब इस्लामियात चिंगी शहीद इमामबाड़ा तुर्कमानपुर में हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। मकतब इस्लामियात के कारी मोहम्मद अनस रजवी, हाफिज सैफ अली, हाफिज अशरफ रज़ा, इंजमाम खान, आतिफ ने शान के साथ ध्वजारोहण किया। सना, सादिया, शिफा, नूर फातिमा, रहमत अली, मो. नसीम, मो. शाद, मो. सफियान, अब्दुस समद, अशरफ अली, उजैन आदि ने कौमी तराना, देश प्रेम पर आधारित गीत पेश किया। देश की आज़ादी के लिए कुर्बानी देने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को शिद्दत से याद करते हुए संगोष्ठी हुई। अध्यक्षता मुफ्ती-ए-शहर अख़्तर हुसैन मन्नानी ने की। संचालन हाफिज सैफ व मौलाना दानिश रज़ा अशरफी ने किया। क़ुरआन-ए-पाक की तिलावत अदीबा फातिमा ने की। 

मुख्य अतिथि एमएसआई इंटर कॉलेज के वरिष्ठ शिक्षक मुख्तार अहमद ने बच्चों को शिक्षा हासिल करने की नसीहत की। जंगे आज़ादी के तमाम पहलुओं पर प्रकाश डाला। कहा कि मुगल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र ने उलमा किराम को बुलाया और मशवरा तलब किया कि अंग्रेजों के ख़िलाफ़ जंग क्या मायने रखती है क्या इनकी हुक़ूमत को तस्लीम किया जाए या फिर इनसे जंग की जाए। तब हज़रत अल्लामा फज़ले हक़ खैराबादी ने अंग्रेजों के ख़िलाफ़ जिहाद का फतवा दिया और कहा अंग्रेजों से जिहाद करना जायज़ है। जब आपने फतवा दिया तो पूरे हिन्दुस्तान में कोहराम मच गया। फतवा देने के कई महीने बाद अंग्रेजों ने आपको गिरफ़्तार किया। अग्रेजों ने कहा चूंकि आपने हमारे ख़िलाफ़ जंग का फतवा दिया है और हमारी हुकूमत को तस्लीम नहीं किया इस पर हम आपको काले पानी की सज़ा देते हैं। आपको काला पानी अंडमान में भेज दिया गया। 20 अगस्त 1861 (12 सफर 1278 हिजरी) में अल्लामा फज़ले हक़ खैराबादी का विसाल 66 साल की उम्र में हुआ और आपका मजार भी जजीरा अंडमान निकोबार में है। 

वरिष्ठ शिक्षक मोहम्मद आज़म ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के बारे में विस्तार से बताया। कहा कि जंगे आज़ादी में मुसलमानों ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। अपनी अज़ीम कुर्बानियां पेश की। गोरखपुर की सरजमीं भी इससे खाली नहीं है। इसी सरजमीं पर राजा शाह इनायत अली, सरफराज अली, मोहम्मद हसन, सरदार अली सहित तमाम जानिसारों ने वतन की आज़ादी के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया। बसंतपुर स्थित मोती जेल उन अज़ीम वतन के रखवालों की दास्तान अपने दामन में छुपाए हुए है। यहीं पर मौजूद है खूनी कुआं, पाकड़ का पेड़। जिसमेें सैकड़ों देश प्रेमियों को फांसी के फंदे पर चढ़ा दिया गया। 

वरिष्ठ शिक्षक नवेद आलम ने हिंदुस्तान की आज़ादी में मुसलमानों के अहम योगदान व भूमिका पर प्रकाश डाला।कहा कि हिन्दुस्तान में अंग्रेज आए और अपनी मक्कारी से यहां के हुक्मरान बन गए। सबसे पहले अंग्रेजों के ख़िलाफ़ अल्लामा फज़ले हक़ खैराबादी ने दिल्ली की जामा मस्जिद से जिहाद के लिए फतवा दिया। पूरे मुल्क के हिंदू-मुसलमान तन, मन और धन से अंग्रेजों के ख़िलाफ़ सरफ़रोशी का जज़्बा लिए मैदान में कूद पड़े।उलमा-ए-अहले सुन्नत ने अपने ख़ून से हिंदुस्तान को सींचा और लोगों को गुलामी के ज़ंजीरों से आज़ाद होने का जज़्बा पैदा किया। 

छात्रा शिफा खातून ने कहा कि हज़रत सैयद किफायत अली काफी मुरादाबादी, अल्लामा फज़ले हक़ खैराबादी, हज़रत शाह वलीउल्लाह, हज़रत शाह अब्दुल अज़ीज़, नवाब सिराजुद्दौला, मुफ्ती किफायत उल्ला कैफी, मुफ्ती इनायत अहमद, हाफ़िज़ रहमत खां, मौलाना रज़ा अली ख़ां, बेगम हज़रत महल, मौलाना अब्दुल हक खैराबादी, मौलाना मुफ्ती नकी अली ख़ां व लाखों मुसलमानों ने मुल्क के लिए अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी, यह सभी वतन से बेपनाह मुहब्बत रखते थे। जंगे आज़ादी में उलमा-ए-अहले सुन्नत ने अहम किरदार निभाया। 

कार्यक्रम में शिक्षक आसिफ महमूद, एडवोकेट मो. आजम, वरिष्ठ पत्रकार सेराज अहमद कुरैशी, मनोवर अहमद, हाजी सेराज अहमद राइनी, हाजी जलालुद्दीन कादरी, समीर अहमद, नूर मोहम्मद दानिश, इंजमाम खान, आतिफ सहित शिक्षक व छात्र मौजूद रहे

Jr. Seraj Ahmad Quraishi
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