ईद रोजेदारों के लिए अल्लाह का ईनाम है - मुफ्ती अख्तर
सैय्यद फरहान अहमद
गोरखपुर उत्तर प्रदेश।
मुफ्ती-ए-शहर अख्तर हुसैन मन्नानी ने कहा कि हदीस में है कि जब ईद-उल-फित्र की मुबारक रात तशरीफ़ लाती है तो इसे लैलतुल जाइजा यानी ईनाम की रात के नाम से पुकारा जाता है। ईदैन की रात यानी शबे ईद-उल-फित्र और शबे ईद-उल-अज़हा में सवाब के लिए खूब इबादत करनी चाहिए। पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि ईद तो दरअसल उन खुशनसीब मुसलमानों के लिए है जिन्होंने रमज़ानुल मुबारक को रोज़ा, नमाज़ और दीगर इबादतों में गुजारा, तो यह ईद उनके लिए अल्लाह की तरफ से मजदूरी मिलने का दिन है। ईद की नमाज़ से पहले सदका-ए-फित्र अदा कर देना चाहिए। कसरत से सदका देना चाहिए। आपस में मुबारकबाद देना बाद नमाज़े ईद हाथ मिलाना और गले मिलना बेहतर है। इससे भाईचारगी बढ़ती है।
मरकजी मदीना जामा मस्जिद रेती चौक के इमाम मुफ्ती मेराज अहमद कादरी ने बताया कि पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया है कि यदि समाज का एक तबका अपनी जायज़ जरूरतों को पूरा नहीं कर पाता है तो आर्थिक रूप से सम्पन्न लोगों की यह जिम्मेदारी है कि वे उसे खुशहाल ज़िन्दगी बसर करने में मदद करें। यही अल्लाह के नेक बंदों का काम है। इस तरह ईद अमीर-गरीब के बीच की खाई को पाटने में पुल का काम करती है।
सब्जपोश हाउस मस्जिद जाफरा बाजार के इमाम हाफिज रहमत अली निजामी ने कहा कि माह-ए-रमज़ान के आखिरी दस दिनों में एक अहम रात है जिसे लैलतुल कद्र या शबे कद्र के नाम से जाना जाता है। जिसमें इबादत करने को अल्लाह तआला ने हज़ार महीनों यानी पूरी ज़िंदगी की इबादत से ज़्यादा अफज़ल क़रार दिया है। इसी अहम रात की इबादत को हासिल करने के लिए 2 हिजरी में रमज़ान के रोज़े फ़र्ज़ होने के बाद से पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हमेशा आख़िरी अशरे का एतिकाफ फरमाया करते थे। अल्लाह हम सबको इस मुबारक महीने की कद्र करने वाला बनाए और शबे कद्र में इबादत करने की तौफीक़ अता फरमाए। रमज़ान के बचे रोज़ों में खूब इबादत कर अल्लाह को राज़ी कर लें।
मुकीम शाह जामा मस्जिद बुलाकीपुर के इमाम मौलाना मो. फिरोज निजामी ने कहा कि रमज़ान का तीसरा अशरा जहन्नम से निजात का है। इस अशरे में अल्लाह की इबादत करने वालों को जहन्नम की आग से निजात मिलती है। रमज़ान हमें बताता है कि हर किसी के साथ मिलकर रहें, बुराइयों से बचें। सिर्फ भूखे प्यासे न रहें बल्कि हर गैर मुनासिब काम से बचने की कोशिश करें। मुक़द्दस रमज़ान वो है जो इंसान को इंसानियत के राह पर ले जाता है।
गौसिया मस्जिद छोटे काजीपुर के इमाम मौलाना मोहम्मद अहमद निजामी ने बताया कि जरूरतमंद लोगों की ईद को खुशगवार बनाने के लिए मुसलमानों को सदका-ए-फित्र देने का हुक्म दिया गया है। यह उन्हीं लोगों को दिया जा सकता है जो जकात के हकदार हैं यानी गरीब, मजलूम और मिस्कीन मुसलमान। ईद की नमाज़ पढ़ने से पहले अनाज या पैसे की शक्ल में सदका-ए-फित्र निकाल देना चाहिए। अनाज के बजाए उसकी कीमत देना ज्यादा बेहतर है।