ओबीसी बाहुल्य वोटर वाली सीट पर कांग्रेस-बीजेपी प्रत्याशी को कांग्रेस का बागी दे रहा चुनौती।
ग्राउंड रिपोर्ट : भाजपा के पुरोधा शेखावत वाली श्रीमाधोपुर सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला।
-चुनाव नहीं लडऩे का ऐलान करने वाले दीपेंद्र के यू टर्न से लोगों में नाराजगी, ओबीसी चेहरा नहीं मिलने पर भाजपा ने 2018 के प्रत्याशी खर्रा पर लगाया दांव।
वसीम अकरम
जयपुर/श्रीमाधोपुर, राजस्थान।
सीकर जिले की श्रीमाधोपुर विधानसभा सीट इस समय प्रदेश की हॉट सीट बनती नजर आ रही है। इस सीट पर बीजेपी के पुरोधा और प्रदेश के पूर्व सीएम एवं देश के पूर्व उपराष्ट्रपति भैंरोसिंह शेखावत ने भी चुनाव लड़ा था। इस बार इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला नजर आ रहा है। 1990 के बाद इस सीट से कांग्रेस 4 बार, बीजेपी 2 बार एवं एक बार निर्दलीय ने चुनाव जीता है। सीकर जिले में 8 विधानसभा सीटें आती हैं, जिसमें 7 सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली तो एक निर्दलीय उ मीदवार ने जीत हासिल की थी। बीजेपी का यहां पर खाता तक नहीं खुला था। प्रदेश की सियासत में श्रीमाधोपुर सीट हाई प्रोफाइल सीट की लिस्ट में शुमार है। इस बार यहां कांग्रेस की टिकट कटने पर बलराम यादव बागी के रूप में चुनावी रण में हैं। हालांकि कांग्रेस व बीजेपी दोनों ही यहां पर ओबीसी चेहरा तलाश रहे थे, लेकिन अब यादव बाहुल्य सीट पर ओबीसी बलराम चुनौती देते नजर आ रहे हैं।
कांग्रेस प्रत्याशी दीपेंद्र सिंह शेखावत ने अपनी उम्र व स्वास्थ्य का हवाला देकर इस बार चुनाव नहीं लडऩे की बात कही थी। वह अपने बेटे के लिए टिकट मांग रहे थे, लेकिन कांग्रेस ने दीपेंद्र सिंह पर ही दांव लगाया है। उनके यू टर्न लेकर चुनाव लडऩे से क्षेत्र के लोगों में खासी नाराजगी है। वहीं कांग्रेस की ओर से यहां युवा बलराम यादव टिकट की रेस में थे और इस पर काफी मंथन के बाद अंत में हाईकमान ने उनका टिकट काट दिया। इससे नाराज होकर बलराम यादव निर्दलीय रूप से चुनावी समर में कूद गए हैं। वहीं बीजेपी की ओर से यहां से झब्बर सिंह खर्रा चुनावी मैदान में हैं। बीजेपी ने जाट प्रत्याशी पर दांव लगाया है, लेकिन किसान आंदोलन एवं दिल्ली जंतर-मंतर पर महिला पहलवान प्रकरण के चलते जाट समाज के लोग उनसे नाराज बताए जा रहे हैं। इसी के चलते यहां पर त्रिकोणीय मुकाबला नजर आ रहा है। हालांकि अभी तक कांग्रेस प्रत्याशी क्षेत्र में उतनी सक्रियता नहीं दिखा रहे हैं और बीजेपी प्रत्याशी रिवाज-परंपरा के मिथक के चलते जीत के प्रति अति आत्मविश्वास से भरे हुए नजर आ रहे हैं। जबकि निर्दलीय बलराम यादव लगातार दूसरे दलों के साथ ही यादव के अलावा अन्य समाज का समर्थन हासिल करने के अभियान में लगे हैं। वैसे भी इस सीट पर सर्वाधिक वोटर भी यादव ही हैं और वह बदलाव का नारा बुलंद करते नजर आ रहे हैं। 1957 में यह सीट उस समय चर्चा का विषय बनी थी जब यहां से भैंरोसिंह शेखावत चुनाव में जनसंघ की ओर से कूदे थे। कांग्रेस ने पहली बार महिला प्रत्याशी गीता बजाज पर दांव लगाया था, लेकिन शेखावत ने बाजी मारी थी। इसके बाद इस सीट पर हरलाल सिंह खर्रा का दौर आया। वह 1967 में पहली बार जनसंघ से विधायक बने, फिर 1972 में दो ही प्रत्याशी होने के कारण कांग्रेस व जनसंघ में सीधा मुकाबला हुआ। इसमें कांग्रेस के सांवरमल मोर ने जनसंघ के हरलाल सिंह खर्रा को हराया था। इसके बाद कांग्रेस का दौर दीपेंद्र सिंह शेखावत की वजह से आया, जो अभी तक बरकरार है।
ओबीसी चेहरा नहीं मिलने से खर्रा पर दांव।
2018 के चुनाव में भी कांग्रेस-बीजेपी के बीच कड़ा मुकाबला हुआ था। कांग्रेस के दीपेंद्र सिंह ने करीब 90 हजार 941 वोट हासिल किए थे, जबकि बीजेपी के झाबर सिंह खर्रा ने 79 हजार 131। दीपेंद्र करीब 11 हजार 810 वोट से जीते थे। इस बार दीपेंद्र सिंह के चुनाव नहीं लडऩे के बयान के बाद कांग्रेस नए चेहरे की तलाश कर रही थी। वहीं बीजेपी भी नया चेहरा तलाश रही थी। दोनों ही पार्टी यादव बाहुल्य इस सीट पर ओबीसी चेहरा उतारकर मैदान मारना चाहती थी, लेकिन विकल्प नहीं मिला। इसके चलते इस बार निर्दलीय बलराम यादव ओबीसी के दम पर दूसरी बार इस सीट से निर्दलीय की जीत के लिए पसीना बहा रहे हैं।
विधानसभा के मुख्य मुद्दे।
इस विधानसभा सीट पर पानी, शिक्षा एवं स्वास्थ बड़ा मुद्दा है। स्थानीय लोग उच्च शिक्षा के क्षेत्र में यहां और बेहतर काम की मांग लगातार करते रहे हैं।
आंकड़ों पर एक नजर
श्रीमाधोपुर विधानसभा सीट पर करीब 2 लाख 71 हजार वोटर हैं। जिनमें करीब एक लाख 43 हजार 5 सौ पुरुष तो 1 लाख 27 हजार 500 के करीब महिला मतदाता हैं। 2018 में यहां 71.29 परसेंट वोटिंग हुई थी तो 2008 में 63.3 परसेंट। जातिगत समीकरण की बात करें तो यहां पर सर्वाधिक वोटर यादव है। इसके बाद एससी, राजपूत, जाट, माली वोटरों की सं या सर्वाधिक है। परिसीमन के बाद इस विधानसभा में आईं 11 नई ग्राम पंचायतों के कारण यहां पर गुर्जर वोटरों की सं या में काफी इजाफा हुआ है। हालांकि इस सीट पर यादव, माली, गुर्जर वोटर पर ही प्रत्याशियों की नजर रहती हैं और यही यहां के किंगमेकर हैं।
अभी तक यह रहे यहां विधायक
श्रीमाधोपुर विधानसभा में 1952 आरआरपी से रूपनारायण, 1957 जनसंघ से भैंरोंसिंह शेखावत, 1962 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के रामचंद्र, 1967 जनसंघ से हरलाल सिंह खर्रा, 1972 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से सांवरमल मोर, 1977 जनता पार्टी से हरलाल सिंह खर्रा, 1980 में कांग्रेस से दीपेंद्र सिंह शेखावत, 1985 में बीजेपी के हरलाल सिंह खर्रा, 1990 बीजेपी से हरलाल सिंह खर्रा, 1993 में कांग्रेस से दीपेंद्र सिंह शेखावत, 1998 में कांग्रेस से दीपेंद्र सिंह शेखावत, 2003 में हरलाल सिंह खर्रा निर्दलीय, 2008 में कांग्रेस से दीपेंद्र सिंह शेखावत, 2013 में बीजेपी से झाबर सिंह खर्रा और वर्ष 2018 में कांग्रेस से दीपेंद्र सिंह शेखावत ने जीत दर्ज की थी। 1990 के बाद यहां से बीजेपी 2 बार तो कांग्रेस ने 3 बार एवं 1 बार निर्दलीय ने बाजी मारी है।