हमें साइंस और नई टेक्नालॉजी के मैदान में भी आगे बढ़ना चाहिए - मौलाना मसऊद
-अलहदादपुर में दो दिवसीय सालाना जलसा।
सैय्यद फरहान अहमद
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश।
मदरसा जामिया कादिरिया तजवीदुल कुरआन लिल बनात का दो दिवसीय सालाना जलसा रविवार को अलहदादपुर इमामबाड़ा के निकट शुरू हुआ। अध्यक्षता कारी शराफत हुसैन कादरी ने की। अल जामियतुल अशरफिया मुबारकपुर के मुफ्ती निजामुद्दीन मिस्बाही ने अवाम के सवालों का जवाब दिया।
मुख्य वक्ता मौलाना मसऊद अहमद बरकाती ने कहा कि अल्लाह ने इल्म की ख़ास अहमियत क़ुरआन में कई बार ज़िक्र की है। पहली वही की इब्तेदा ‘इक़रा’ के लफ़्ज़ से फ़रमाकर क़यामत तक आने वाले इंसानों को इल्म के ज़ेवर से आरास्ता होने का पैग़ाम दिया। पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने भी इल्म की ख़ास अहमियत व फ़ज़ीलत को बार-बार ज़िक्र फ़रमाया। यह ध्यान देने की बात है कि इल्म उस वक़्त ही क़ाबिले क़द्र और रहमत का बाइस होगा जब उसके ज़रिए अल्लाह का ख़ौफ़ और अल्लाह की पहचान हासिल हो और ज़ाहिर है कि यह हालत क़ुरआन व हदीस से हासिल शुदा इल्म से ही पैदा होती है। लिहाज़ा हमें दुनियावी उलूम, साइंस और नई टेक्नालॉजी के मैदान में भी आगे बढ़ना चाहिए लेकिन बुनियादी तौर पर क़ुरआन व हदीस के इल्म से ज़रूर रोशनास होना चाहिए।
विशिष्ट वक्ता मौलाना जहांगीर अहमद अजीजी ने कहा कि इस्लाम धर्म ने इंसानों के हुकूक का जितना ख़्याल रखा है उसका कोई उदाहरण किसी मज़हब में नहीं मिलता। इस्लाम में आम इंसानों के हुक़ूक के साथ-साथ वालिदैन के हुक़ूक, मियाँ-बीवी के हुक़ूक़, पड़ोसियों के हुक़ूक़ और मज़दूरों के हुक़ूक़ की अदायगी के लिए ख़ास हिदायात जारी फ़रमाई है। इस्लाम में यतीमों, बेवाओं और मज़लूमों का ख़ास ख़्याल रखा गया है। इस्लामी शरीअत ने तमाम इंसानों के साथ अच्छे अख़लाक़ से पेश आने की दावत दी है। इस्लाम की ख़ूबियों में से एक अहम ख़ूबी यह भी है कि इस्लामी शरीअत ने अख़लाक़ को बेहतर से बेहतर बनाने की ख़ुसूसी तालीमात दी है।
विशिष्ट वक्ता नायब काजी मुफ्ती मो. अजहर शम्सी व मुफ्ती मुनव्वर रजा ने कहा कि इस्लाम धर्म ने ईमानियात, इबादात, मुआमलात और मुआशरत में पूरी ज़िंदगी के लिए इस तरह रहनुमाई की है कि हर शख़्स चौबीस घंटे की ज़िंदगी का एक-एक लम्हा अल्लाह की तालीमात के मुताबिक पैग़ंबरे इस्लाम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के तरीक़े पर गुज़ार सके। इस्लाम में खाने, पीने, सोने यहाँ तक कि इस्तिंजा करने का तरीक़ा भी बताया गया है। रास्ता चलने के आदाब भी बयान किए गए हैं।
कुरआन-ए-पाक की तिलावत कारी शादाब रजा ने की। अंत में सलातो सलाम पढ़कर अमनो अमान की दुआ मांगी गई। संचालन मौलाना मकसूद आलम मिस्बाही ने किया। जलसे में मुफ्ती अख्तर हुसैन, मौलाना महबूब आलम, कारी रईसुल कादरी, कारी अब्दुल हफीज, एजाज अहमद, कारी मो. शाहिद रजा, मौलाना असलम सहित तमाम लोगों ने शिरकत की।