इंसानियत के रास्ते में आने वाली मुश्किलों को प्रायोगिक तौर से खुद पर आजमाना रोजा है - खुर्शीद अहमद मून
सैय्यद फरहान अहमद
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश।
समाजसेवी खुर्शीद अहमद मून ने कहा कि सभी जानते हैं कि रमजान माह के ठीक बाद शव्वाल माह की पहली तारीख को ईद मनाई जाती है। रमजान की पहचान रोजा रखने और रोजों की पहचान सुबह सादिक से लेकर सूरज डूबने तक भूखा-प्यासा रहना माना जाता है, लेकिन रोजे रखने के पीछे का उद्देश्य हम जानेंगे तो पाएंगे कि यह सोशलिस्ट समाज के काफी करीब है। एक ऐसा समाज जो न सिर्फ इंसानियत की बात करता है, बल्कि उसके रास्ते में आने वाली मुश्किलों को प्रायोगिक तौर पर खुद के ऊपर आजमाता है। जकात अदा करने के पीछे का सही मकसद यह है कि आपकी दौलत पर आपके आसपास के उन तमाम मुसलमानों का हक है, जो गरीब और बदहाल हैं।