संतान के रक्षा व दीर्घायु के लिए कुश पुजा का महत्व।
सेराज अहमद कुरैशी
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
भाद्र मास कृष्ण पक्ष हल षष्ठी पर्व पर माताओं ने निर्जल व्रत रखा। कुश की पूजन के साथ अटूट गांठ बांधकर संतान के दीर्घायु का वरदान मांगी। घर-आंगन, मंदिर, पास-पडोस, बाग-बगीचे में विधि विधान से पूजन-अर्चन कर पौराणिक कथा के साथ किस्सा-कहानी का श्रवण किया। पर्व पर मंदिरों में देवी प्रतिमाओं के दर्शन भी किए गए। हल षष्ठी पर्व पर प्रात: माताएं अपने हाथों में पूजन-सामग्री लेकर कुश की पूजा के लिए समूह बनाकर घरों से निकलीं। निर्धारित स्थानों पर कुश रोपण़ कर तिन्नी, महुआ, दही लगाकर अटूट गांठ बांधा। बिना हल से जुताई किए खेत का साग आदि एकत्र कर कथा, किस्सा, गीत, कहानी कथा श्रवण के महात्म्य सुना। पूजन के पश्चात संतान की लम्बी उम्र के साथ दीर्घायु एवं यशस्वी होने की कामना किया। व्रत धारी माताओं पूजन सामग्री के साथ कुश स्थान पर पहुंच कर कुश पौधे का पूजन किया। इसके बाद कुश के छह पत्तों में गांठ लगाकर उसमें माता तृण षष्ठी देवी का आह्वान कर उनकी पूजा करती है। तिन्नी के चावल, महुआ व दही का भोग अर्पित कर संतानों के दीर्घायु की मंगलकामना की गई। व्रती आपस में पर्व से संबंधित कथाएं श्रवण किया। पूजन स्थल व परिवार में घर में तिन्नी, चावल, दही व महुआ का प्रसाद का वितरण भी किया। पर्व पर पूरे दिन व्रती पौराणिक कथा-कहानी सुन कर पर्व की महत्ता से अवगत होती रहीं। जगह-जगह पूजन थाल लिए पुत्र के लिए असीम स्नेह के साथ झुंड में निकली गीत गाती महिलाओं का उत्साह आकर्षण का केंद्र रहा। घर-आंगन, बाग-बगिचा, सरोवर, नदी के तट आदि स्थानों पर पूजन हुआ। समस्त हिंदू धर्म पुत्र के दीर्घायु एवं मंगल के लिए छट्ठी व्रत का अनुष्ठान करती हैं। व्रत में तिन्नी के चावल, महुआ व दही का भोग अर्पित कर दीर्घायु की प्रार्थना व प्रसाद का विशेष महत्व है। यह पर्व अनादि काल से संतान के सुख, समृद्धि उपरंपरागत ढंग से महिलाओं द्वारा चला आ रहा है, जिसमें कुश पूजा का महत्व है। मंदिरों, तालाबों तथा बगीचे में चहल-पहल रही।
उसमें तृण पष्ठी देवी के पूजा हुई। व्रत रहने वाली नारी हल से जोते भूमि पर पैर नही रखती है तथा हल से जोती गई भूमि में उत्पन्न शाक, फल आदि ग्रहण करने से परहेज किया।