धर्म, संस्कृति व इतिहास से जुड़ा रक्षाबंधन।
एकजुटता, दीर्घायु की कामना के साथ समाज रक्षा का पर्व
-स्नेह की डोर समरसता का प्रतीक, कच्चे धागे की अहमियत
सीमा भारद्वाज , गोरखपुर उत्तर प्रदेश :
श्रावण पूर्णिमा रक्षाबंधन पवित्र रिश्ते व विश्वास का अनूठा पर्व है। भातृत्व प्रेम, सुरक्षा व सम्मान के लिए रक्षा बंधन का महत्व है। भाई बहन के प्रेम, स्नेह व विश्वास के पावन पर्व रक्षाबंधन की परंपरा सदियों से चली आ रही है। श्रावण मास के पूर्णिमा की आदि काल से मान्यता है। इसका पौराणिक नाम ‘रक्षा विधान’ है। एक रक्षा के कई जज्बे हैं। जहां बहनें भाई के कलाई में रक्षा बांधती हैं, वहीं सामाजिक समरसता के पर्व पर ब्राह्नण व पुरोहित भी समाज को एक सूत्र में पिरोपित कर समाज रक्षा में योगदान दे रहे हैं। पर्व पर बहनें उत्साह पूर्वक भाइयों की कलाई में स्नेह का डोर बांधकर अपनी सुरक्षा का वचन लेती हैं और माथे पर तिलक लगाकर रक्षा की मंगलकामना भी करती हैं। यह कच्चे धागे की शक्ति तथा विश्वास का पर्व सुरक्षा का बोध कराता है। स्नेह के अटूट बंधन की परंपरा समाज में समरसता का भाव पिरोपित कर रहे है। सगे भाई-बहनों के अभाव में भाई व बहन की मान्यता देकर राखी बांधने की भी परंपरा है। साथ ही पुरोहित अपने यजमानों की रक्षा व समाज में समरसता कायम करने के लिए रक्षा सूत्र बांधते हैं।
रक्षाबंधन का पर्व हमारे धर्म, संस्कृति व इतिहास से सीधे जुड़ा है। धार्मिक और ऐतिहासिक पहलू रक्षाबंधन पर्व के कई धार्मिक और ऐतिहासिक पहलू भी है। राखी का त्योहार कब शुरू हुआ यह बताना संभव नही है। इसका प्रमाण सतयुग में भी मिलता है। द्वापर युग में द्रौपदी ने श्रीकृष्ण के हाथ में चोट लगने पर कपड़ा बांधा जिसके बाद उन्होंने द्रौपदी को बहन मानकर उसकी रक्षा का वचन दिया था। प्राचीन समय में पुरोहित सावन मास शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को यजमान के हाथों में रक्षा सूत्र बांधकर उनके मंगल की कामना करते थे। मुगल काल में चित्तौड़ की रानी कर्णावती ने हुमायूं को राखी भेजकर अपनी रक्षा का वचन लेने का प्रसंग मिलता है। पौराणिक महत्व के कारण रक्षा बंधन के दिन बहनें भाइयों को राखी बांधकर अपनी रक्षा का वचन लेती है। भविष्य पुराण में वर्णन मिलता है कि देव और दानवों में जब युद्ध शुरू हुआ तब दानव हावी होते नज़र आने लगे। भगवान इंद्र घबरा कर बृहस्पति के पास गए वहां बैठी इंद्र की पत्नी इंद्राणी ने रेशम का धागा मंत्रों की शक्ति से पवित्र करके अपने पति के हाथ पर बांध दिया। संयोग से वह श्रावण पूर्णिमा का था।
इस लड़ाई में इसी धागे की मंत्र शक्ति से ही विजयी हुए थे। उसी दिन से धागा बांधने की प्रथा चली आ रही है। यह धागा धन, शक्ति, हर्ष और विजय देने में पूरी तरह समर्थ माना जाता है। स्कन्ध पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत में वामनावतार नामक कथा में प्रसंग मिलता है।
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रक्षिका वर्तमान में राखी
-श्रावण पूर्णिमा का महत्व इस बात से और बढ़ जाता है कि इस दिन पाप पर पुण्य, कुकर्म पर सत्कर्म और कष्टों के उपर सज्जनों का विजय हासिल करने के प्रयासों का आरंभ हो जाता है। जो व्यक्ति अपने शत्रुओं या प्रतियोगियों को परास्त करना चाहता है उसे इस दिन वरूण देव की पूजा भी होती है। वेद शास्त्रों के अनुसार रक्षिका को आज के आधुनिक समय में राखी के नाम से जाना जाता है. रक्षा सूत्र को सामान्य बोलचाल की भाषा में राखी कहा जाता है। इसका अर्थ रक्षा करना, रक्षा को तत्पर रहना या रक्षा करने का वचन देने से है। प्यार की डोर से भाइयों को इतनी शक्ति मिलती है, कि वह अपनी बहन की रक्षा करने में समर्थ रहते है। भाई-बहन के रिश्ते की झलक देने वाबक रक्षाबंधन प्रमुख पर्व है। सभी को एकता के सूत्र में बांधने का संदेश देने वाले पर्व की मान्यता है।