वहाब अशर्फी ने उर्दू आलोचक के रुप में अपनी अलग पहचान बनाई : प्रोफेसर एजाज अली अरशद
पटना / हाजीपुर (वैशाली) कालेज आफॅ कामर्स आर्ट्स एण्ड साइंस पटना में उर्दू के विद्वान और आलोचक वहाब अशर्फी की आलोचनात्मक अंतर्दृष्टिश विषय पर अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया।सेमिनार का आयोजन कतर दोहा की साहित्यिक संस्था बज्म सदफ इंटरनेशनल और कालेज ऑफ कामर्स के उर्दू विभाग ने संयुक्त रूप से किया था।सेमिनार में विषय प्रवेश कराते हुए उर्दू के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर सफदर इमाम कादरी ने वहाब अशर्फी की लेखनी के विभिन्न विधाओं पर विस्तार से प्रकाश डाला। सेमिनार का उद्घाटन करते हुए प्रधानाचार्य प्रोफेसर इंद्रजीत प्रसाद राय ने कहा कि प्रोफेसर वहाब अशर्फी उर्दू साहित्य के कद्दावर व्यक्तित्त्व के मालिक थे। उन्होंने कहा कि वह कवि भी थे और कहानीकार भी, लेकिन उर्दू साहित्य के आलोचकों में उन्हें ख्याति प्राप्त हुई जिस के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया। सेमिनार को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित कहानीकार प्रोफेसर अब्दुस समद ने कहा कि वहाब अशर्फी वहुआयामी व्यक्तित्त्व के मालिक थे। वह सिर्फ आलोचक नहीं बल्कि कवि, कहानीकार और पत्रकार भी थे। विशिष्ट अतिथि के रूप में सेमिनार को संबोधित करते हुए दोहा कतर से आए बज्मे सदफ इंटरनेशनल के अध्यक्ष शहाबुद्दीन अहमद ने वहाब अशर्फी के व्यक्तित्त्व और कृतित्व पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए उनकी लेखनी पर और विस्तार से शोध करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि उनकी संस्था शोधकर्ताओं को हर संभव मदद करेगी। सेमिनार को संबोधित करते हुए पटना लेट्रेरी फेस्टिवल के संस्थापक खुर्शीद अहमद ने कहा कि बहाब अशर्फी अपने आप में एक संस्था थे। सेमिनार में शिरकत करने दुबई से आए उनके पुत्र शहीर अशर्फी ने कहा कि वहाब अशर्फी ने अपनी पूरी जिन्दगी उर्दू साहित्य के लिए वक्फ कर दी। उन्होंने उर्दू साहित्य को समृद्ध करने के लिए अन्य विषयों का भी गहन अध्ययन किया। उन्होंने छात्रों और शोधकर्ताओं को उर्दू साहित्य के साथ साथ उन्य विषयों का भी अध् ययन करने का सुझाव दिया। अंग्रेजी के प्रोफेसर अफरोज अशर्फी ने वहाब अशर्फी के व्यक्तित्त्व की चर्चा करते हुए कहा कि उन्होंने एक एक गरीब परिवार में जन्म लिया और गरीबी को बहुत कघरीब से देखा इसका प्रतिबिंब उनकी कहानियों में भी देखा जा सकता है। अपने अध्यक्षीय भाषण में मौलाना मजहरूल हक विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर एजाज अली अरशद ने कहा कि वहाब अशर्फी ने उर्दू साहित्य की आलोचना करते समय किसी की पैरवी या नकघ्ल नहीं की बल्कि उन्होंने अपनी अलग राह बनाई और उसी पर चलते रहे। इस अवसर पर उर्दू विभाग की शोध पत्रिका उर्दू टू डे के नए अंक तथा शमीम कासमी की पुस्तक श्खघशाक ए तनकघदश का विमोचन भी किया गया। सेमिनार में अन्य लोगों के अलावा साहित्य आकादमी सम्मान से पुरस्कृत डॉक्टर जफर कमाली, भैरव गंगोली कालेज कोलकाता के डॉक्टर मोहम्मद तय्यब नोमानी दुबई से आए शकील अशर्फी, आईक्यूएसी के समन्वयक डॉक्टर संतोष कुमार ने भी अपने विचार व्यक्त किए। मंच का संचालन डॉक्टर अफशां बानों ने किया जबकि धन्यवाद ज्ञापन उर्दू विभागाध्यक्ष डॉक्टर अकबर अली ने किया। इस अवसर पर वी ए और एम ए के टॉपरों और लेख प्रतियोगिता में प्रथम, द्वितीय और तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले छात्र छात्राओं को पुरस्कृत भी किया गया साथ ही बिहार विश्वविद्यालय सेवा आयोग द्वारा नव नियुक्त 71 व्याख्याताओं को सम्मानित भी किया गया। इस अवसर पर उर्दू के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉक्टर तारिक फातमी, प्रोफेसर सलोनी कुमार, प्रोफेसर मंगला रानी, प्रोफेसर कीर्ति, डॉक्टर खालिद अहमद, डॉक्टर मोहम्मद अब्बास समेत बड़ी संख्या में विभिन्न कालेजों के शिक्षक और छात्र छात्राएं उपस्थित थे। सेमिनार के दूसरे सत्र में देश के विभिन्न क्षेत्रों से आए एक दर्जन से अधिक शिक्षकों और शोध कर्ताओं ने अपने शोधपत्र प्रस्तुत किए।इस अवसर पर पूर्व विधायक डॉक्टर इजहार अहमद,उर्दू एक्शन कमिटी के डॉक्टर अनवारूल होदा,अशरफुन्नबी कैसर,वैशाली जिलाध्यक्ष मोहम्मद अजीमउद्दीन अंसारी,वैशाली के मशहूर पत्रकार मोहम्मद शाहनवाज अता,वीर अब्दुल हमीद फाउंडेशन के प्रदेश संगठन सचिव मोहम्मद जमशेद आलम उर्फ प्यारे,सहारा एक्सप्रेस उर्दू के समस्तीपुर जिला ब्यूरो चीफ मोहम्मद मुस्तफा,मोहम्मद अजहरुद्दीन आदि समेत अन्य गणमान्य उपस्थित हुए।