इमाम हुसैन कल भी ज़िंदा थे, आज भी ज़िंदा हैं - गाजिया ख़ानम
सातवीं मुहर्रम : महिलाओं की महफ़िल में गूंजी या हुसैन की सदा।
एक दर्जन से अधिक जगहों पर जारी ‘जिक्रे शोह-दाए-कर्बला’
सैय्यद फरहान अहमद
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश।
‘जिक्रे शोह-दाए-कर्बला’ महफ़िलों के नाम रहा। उलमा किराम ने दीन-ए-इस्लाम, शहादत और कर्बला के बाबत विस्तार से बयान किया। सातवीं मुहर्रम को करीब एक दर्जन से अधिक मस्जिदों में ‘जिक्रे शोह-दाए-कर्बला’ महफिलों का दौर जारी रहा। मुहर्रम की सातवीं तारीख़ को जालिम यजीदियों ने हज़रत इमाम हुसैन व उनके साथियों के लिए पानी पर रोक लगा दी थी। कर्बला का वाकया सुनकर अकीदतमंद इमाम हुसैन की याद में डूब गए।
मकतब इस्लामियात चिंगी शहीद इमामबाड़ा तुर्कमानपुर में महिलाओं की महफ़िल हुई। महफ़िल या हुसैन की सदाओं से गूंजती रही। अध्यक्षता ज्या वारसी ने की। संचालन सादिया खातून ने किया। क़ुरआन-ए-पाक की तिलावत नूर फातिमा ने की। नात-ए-पाक सना खान, नूर सबा, शिफा नूर, शफक, गुल अफ्शा व हदीस -ए-पाक फिजा खातून ने पेश की। मुख्य वक्ता गाजिया ख़ानम अमजदी ने कहा कि कर्बला के 72 शहीदों ने जो बेमिसाल काम किया, उसकी मिसाल दुनिया में नहीं मिलती है। हज़रत सैयदना इमाम हुसैन सन् 61 हिजरी मुहर्रम की दो तारीख़ को कर्बला पहुंचे। सातवीं मुहर्रम को कर्बला के मैदान में जालिम यजीद की फौज ने इमाम हुसैन और उनके साथियों पर पानी की आपूर्ति बंद कर दी ताकि वो शासक जालिम यजीद की मातहती स्वीकार कर लें मगर इमाम हुसैन और उनके साथियों ने ऐसा करने से इंकार कर दिया। नहरे फुरात पर यजीदी फौजियों को लगा दिया गया, ताकि हज़रत इमाम हुसैन का काफिला पानी न पी सके। तीन दिन का भूखा प्यासा रखकर इमाम हुसैन व उनके साथियों को कर्बला की तपती ज़मीन पर शहीद कर दिया गया। इमाम हुसैन कल भी ज़िंदा थे, आज भी ज़िंदा हैं।
शिफा खातून ने कहा हज़रत इमाम हुसैन ने मुल्क या हुकूमत के लिए जंग नहीं की, बल्कि वह इंसानों के सोये हुए जेहन को जगाने आए थे। उनके कुनबे में शामिल बूढ़े, जवान, बच्चे और औरतों ने खुद पर जुल्म सहन कर लिया लेकिन पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दीन-ए-इस्लाम को जालिम यजीद से बचा लिया। आलमे इस्लाम को यह मानने पर मजबूर होना पड़ा कि हक़ और बातिल के बीच हुई जंग में कर्बला के शहीदों ने जो जीत हासिल की वह कयामत तक कायम रहेगी।