हुज़ूर की मुहब्बत के बिना ईमान नामुकम्मल - मुफ्ती अब्दुल मुस्तफा
- हफ़ीज अहमद खान
कानपुर नगर उत्तर प्रदेश।
बरकाती ग्राउण्ड में आयोजित पैग़ाम-ए-शहीदे आज़म की पांचवीं महफ़िल
जलसे में उमड़ा जन सैलाब, अकीदत अकीदतमदों ने लगाये गगनभेदी नारे
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलै.वस. ने फरमाया कि हुसैन मुझसे हैं, मैं हुसैन से हूं, हुसैन मेरे जिगर का टुकड़ा है। यह बात मौलाना मुश्ताक अहमद मुशाहिदी ने बरकाती ग्राउंड में चल रहे पैगामे शहीदे आजम की पांचवीं मजलिस में शुक्रवार रात को कही।बता दे कि मुस्लिम वेलफेयर एसोसिएशन द्वारा आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने इमाम हसन रजि. की शहादत ब्यान करते हुए कहा कि जब यज़ीद के वालिद हज़रते अमीर माविया ने इमाम हसन से दीन की खिदमत के लिए हुकूमत मांगी तो इमाम हसन उन्हें तीन शर्तों पर हुकूमत देने को तैयार हो गए। पहली शर्त थी कि जंग-ए-सिफ्फीन में मौजूद सिपाहियों में कुछ सिपाही अभी भी फौज में हैं, उनसे आप बदला नहीं लेंगे। दूसरी शर्त थी कि दीन की बका के लिए उन्होंने जो भी माल उधार लिया है वह उनको अदा करना पड़ेगा। तीसरी सबसे अहम शर्त थी कि आपके बाद सारी हुकूमत अहलेबैत (हुज़ूर के खानदान) में वापस आ जाएगी। यज़ीद ने एक औरत को तैयार किया उसने पांच बार इमाम हसन को खाने में ज़हर दिया। हर बार इमाम हसन अपने नाना हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहो की मज़ार शरीफ पर चले जाते और ठीक हो जाते। फिर उस औरत ने हीरा पीसकर पीने के पानी में मिला दिया। जब इमाम हसन ने उस पानी को पिया तो उनके गले से लेकर पेट तक सब अंदर कट गया। यहां तक कि पूरे कलेजा कटकर गिर गया। आखिरी वक्त जब इमाम हुसैन अपने बड़े भाई इमाम हसन से मिलने आये तो उन्होंने पूछा कि भाईजान ये सब किसने किया, मुझे नाम बताएं मैं उसका कत्ल कर दूंगा। इस पर इमाम हसन ने कहा कि मुझे जिस पर शक है उसका नाम बताने पर तुम उसको कत्ल कर दोगे लेकिन अगर उसने मुझे जहर न दिया हो तो बरोज़े महशर मेरी पकड़ होगी इसलिए उसे अल्लाह पर छोड़ दो। इससे पहले कार्यक्रम का आगाज़ तिलावते कुरआन से हाफिज़ फज़ले अज़ीम रहमानी ने किया और संचालन डॉक्टर नासिर बेग ने किया।इसके बाद अलीगढ़ के अल बरकात इस्लामिक रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट से आये मुफ़्ती अब्दुल मुस्तफा ने तकरीर की और मुसलमानो को रसूले पाक की मुहब्बत और सुन्नतो पर अमल करने की बात कहीं। उन्होंने कहा जब तक इंसान रसूले पाक से अपने घर बार रिश्तेदार माल दौलत हत्ता की अपनी जान से ज़्यादा मोहब्बत ना करें तब तक उसका ईमान मुकम्मल नहीं।इसके बाद अशरफ बेग बरकाती ने इमाम हुसैन की शान में मनकबत पढ़ी। एसोसिएशन के जनरल सेक्रेटरी शारिक बेग बरकाती,सैय्यद इस्राफील, वासिक बेग, रहीस अहमद, अब्दुल वहाब, मकसूद खान, अब्दुल रज्जाक, मुख्तार अंसारी समेत कई लोग मौजूद रहे।