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धार्मिक / Jul 09, 2024

इमाम हुसैन ने आतंकवाद के ख़िलाफ़ सबसे बड़ी जंग लड़ी - मुफ्ती मेराज

सैय्यद फरहान अहमद

गोरखपुर, उत्तर प्रदेश।

माहे मुहर्रम की दूसरी तारीख़ हज़रत सैयदना इमाम हुसैन व कर्बला के शहीदों का जिक्र मस्जिदों व घरों में हुआ। माहौल गमगीन व नम हुईं। मस्जिद के इमामों ने हज़रत इमाम हुसैन व कर्बला के शहीदों की ज़िंदगी पर रोशनी डाली। फातिहा ख्वानी भी हुई। 

मरकजी मदीना जामा मस्जिद रेती चौक में मुफ्ती मेराज अहमद कादरी ने कहा कि आख़िरी पैग़ंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के नवासे हज़रत सैयदना इमाम हुसैन ने कर्बला के मैदान में आतंकवाद के ख़िलाफ़ सबसे बड़ी जंग लड़ी और इंसानियत व दीन-ए-इस्लाम को बचाने के लिए अपने साथियों की कुर्बानी दी। शहादत-ए-इमाम हुसैन ने दीन-ए-इस्लाम की अज़मत को कयामत तक के लिए बचा लिया। पूरी दुनिया को पैग़ाम दिया कि अन्याय व जुल्म के सामने सर झुकाने से बेहतर है सर कटा दिया जाए। यह पूरी दुनिया के लिए त्याग व कुर्बानी की बेमिसाल शहादत है।

गाजी मस्जिद गाजी रौजा में मुफ्ती-ए-शहर अख़्तर हुसैन मन्नानी ने कहा कि अहले बैत (पैग़ंबर के घराने वाले) से मुहब्बत करने वाला जन्नत में जाएगा। हज़रत इमाम हुसैन की शहादत हमें इंसानियत का शिक्षा देती है। पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया है कि जो शख़्स अहले बैत से दुश्मनी रखता है वह मुनाफिक है।

नूरी मस्जिद तुर्कमानपुर में मौलाना मो. असलम रज़वी ने कहा कि दीन-ए-इस्लाम की तारीख़ शहादतों से भरी पड़ी है। सुन्नी बहादुरिया जामा मस्जिद रहमतनगर में मौलाना अली अहमद ने कहा कि पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बताए दीन-ए-इस्लाम को समझना है तो पहले कर्बला को जानना बेहद जरूरी है। इमाम हुसैन हक़ की जंग तभी जीत गए थे जब सिपहसालार ‘हुर' यजीद की हजारों की फौज छोड़कर मुट्ठी भर हुसैनी लश्कर में अपने बेटों के साथ शामिल हो गए थे। हुर जानते थे कि इमाम हुसैन की तरफ जन्नती लोग हैं और यजीद की तरफ जहन्नमी लोग हैं। 

बेलाल मस्जिद अलहदादपुर में कारी शराफत हुसैन कादरी ने कहा कि जालिम यजीद को सत्य से हमेशा भय रहा, इसलिए अपनी कूटनीति से उसने कर्बला के मैदान में पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के परिवारजन एवं समर्थकों को अपनी फौज से तीन दिनों तक भूखा प्यासा रखने के बाद शहीद करा दिया।

इसी तरह मकतब इस्लामियात चिंगी शहीद इमामबाड़ा तुर्कमानपुर, रसूलपुर जामा मस्जिद, दरगाह हज़रत मुबारक खां शहीद‌ नार्मल, अक्सा मस्जिद शाहिदाबाद हुमायूंपुर उत्तरी, मुकीम शाह जामा मस्जिद बुलाकीपुर सहित अन्य मस्जिदों में भी ‘जिक्रे शोह-दाए-कर्बला’ महफिल हुई। दरूदो सलाम पढ़कर दुआ मांगी गई। शीरीनी बांटी गई।

वहीं बड़गो में जलसा हुआ। जिसमें उलमा किराम ने कहा कि पैगंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया है कि कोई बंदा मोमिने कामिल तब तक नहीं हो सकता जब तक कि मैं उसको उसकी जान से ज्यादा प्यारा न हो जाऊं और मेरी औलाद उसको अपनी जान से ज्यादा प्यारी न हो और मेरे घराने वाले उसको अपने घराने वालों से ज्यादा महबूब न हों। जलसे में मौलाना अमजद अली, हाफिज नूरूलएन, हाफिज अशफ़ाक, हाफिज अताउल्लाह खान, मौलाना जुन्नूरैन, हाजी रुस्तम अली, जियाउल्लाह, असगर, महताब, जुबैर खान, शुएब, एड. मिन्हाज, अजमेर अली, अजीज पप्पू, हकीम, एजाज, नसीम, एस. हुसैन, शहबाज अली, गुलाम रसूल, फैजान, परवेज, शहादत अली, सलीम आदि मौजूद रहे।ट

Jr. Seraj Ahmad Quraishi
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