मुसलमानों पर अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली, हजरत फातिमा, हज़रत हसन व हजरत हुसैन से मुहब्बत करना वाजिब - मुफ्ती अख़्तर हुसैन
गोरखपुर शहर की मस्जिदों में हुआ टजिक्रे सोहदा ए कर्बला
सैय्यद फरहान अहमद
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश।
मस्जिद में मौलाना जहांगीर अहमद अजीजी ने कहा कि कर्बला की जंग दुनिया की पहली आतंकी कार्रवाई थी। जिसमें शहीद हुए लोगों में छह माह के बच्चे से लेकर 78 साल के बुर्जुग शामिल थे।
मकतब इस्लामियात चिंगी शहीद इमामबाड़ा तुर्कमानपुर में मुफ्ती मेराज अहमद कादरी ने कहा कि इमाम हुसैन शहीद तो हो गए लेकिन दुनिया को सब्र व इंसानियत का पैग़ाम दे गए और यह बता गए की दीन-ए-इस्लाम सब्र व शहादत से फैला। इसके लिए कुर्बानियां दी गईं।
गाजी मस्जिद गाजी रौजा में मुफ्ती अख़्तर हुसैन मन्नानी ने कहा कि मुसलमानों पर अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली, हजरत फातिमा, हज़रत हसन व हजरत हुसैन से मुहब्बत करना वाजिब है।
सुन्नी बहादुरिया जामा मस्जिद रहमतनगर में मौलाना अली अहमद ने कहा कि हम हज़रत सैयदना इमाम हुसैन की कुर्बानी को नहीं भूल सकते।
नूरी मस्जिद तुर्कमानपुर में मौलाना असलम ने कहा कि पैगंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने नवासे हज़रत सैयदना इमाम हुसैन की पैदाइश के साथ ही आपके शहादत की खबर दे दी थी। हज़रत अली, हज़रत फातिमा ज़हरा, हज़रत हसन और खुद इमाम हुसैन भी जानते थे कि एक दिन कर्बला के मकाम पर शहीद किया जाऊंगा, लेकिन किसी ने भी और खुद हज़रत इमाम हुसैन ने भी कभी किसी किस्म का शिकवा जुबान पर नहीं लाया, बल्कि सब्र के साथ अपनी शहादत की खबर सुनते रहे।
मुकीम शाह जामा मस्जिद बुलाकीपुर में मौलाना फिरोज निजामी ने कहा कि ‘शोह-दाए-कर्बला’ ने दुनिया को सब्र व इंसानियत का एक अज़ीम पैग़ाम दिया है। जिसे रहती दुनिया तक नहीं भुलाया जा सकता।
गौसिया जामा मस्जिद छोटे काजीपुर में मौलाना मोहम्मद अहमद निजामी ने कहा कि हदीस में है कि पैगंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया मुझे हज़रत जिब्रील ने ख़बर दी कि इमाम हुसैन को तफ़ (कर्बला) में शहीद किया जाएगा। हज़रत जिब्राइल मेरे पास वहां की मिट्टी लाए और मुझसे बताया कि यह हुसैन के शहादतगाह की मिट्टी है। तफ करीबे कूफा उस स्थान का नाम है जिसको कर्बला कहते है। हदीस में आया है कि वह मिट्टी उम्मुल मोमिनीन हज़रत उम्मे सलमा के पास मौजूद रही। वह फरमाती हैं कि मैंने उस सुर्ख मिट्टी को एक शीशी में रख दिया जो हजरत इमाम हुसैन की शहादत के दिन खून हो गई।
इसी तरह अन्य मस्जिदों में ‘जिक्रे शोह-दाए-कर्बला’ महफिल हुई। अंत में सलातो सलाम पढ़कर मुल्क में अमनो अमान की दुआ मांगी गईट।