कुर्बानी हलाल पैसे से ही जायज़ : मुफ्ती अख़्तर हुसैन
सैय्यद फरहान अहमद
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश।
मकतब इस्लामियात तुर्कमानपुर में महाना दीनी महफ़िल हुई। क़ुरआन-ए-पाक की तिलावत हाफिज सैफ अली ने की। नात-ए-पाक अलहम खान, रहमत अली, अशरफ अली, मो. अदनान, मो. तौसीफ ने पेश की। दीनी सवाल जवाब गुलाम वारिस, मो. अकमल ने पेश किया।
मुख्य वक्ता मुफ्ती-ए-शहर अख्तर हुसैन ने हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम व हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम का वाकया बयान किया। कहा कि कुर्बानी का सिलसिला ईद-उल-अज़हा के दिन को मिलाकर तीन दिनों तक चलता है। जो अनकरीब आने वाला है। मुसलमान अल्लाह की रज़ा के लिए कुर्बानी करते हैं। हलाल तरीके से कमाये हुए पैसे से कुर्बानी जायज़ मानी जाती है, हराम की कमाई से नहीं। अल्लाह कुरआन में इरशाद फरमाता हैं कि "ऐ महबूब अपने रब के लिए नमाज़ पढ़ो और कुर्बानी करो।" हदीस शरीफ़ में आया है कि पैगंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि यौमे जिलहिज्ज यानी दसवीं जिलहिज्ज में इब्ने आदम का कोई अमल अल्लाह के नजदीक कुर्बानी करने से ज्यादा प्यारा नहीं है। ईद-उल-अज़हा में हर वह मुसलमान जो आकिल, बालिग, मर्द, औरत जो कुर्बानी के तीनों दिन के अंदर जरुरते अस्लिया को छोड़कर, कर्ज से फारिग होकर तकरीबन पचास हजार रुपए का मालिक हो जाए तो उसके ऊपर कुर्बानी वाजिब है। इसी वजह से हर मुसलमान इस दिन कुर्बानी करवाते हैं। साहाबा किराम ने अर्ज किया या रसूलल्लाह हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम यह कुर्बानी क्या है? आपने फरमाया तुम्हारे बाप हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की सुन्नत है। जो इस उम्मत के लिए बरकरार रखी गई है।
अंत में दरूदो-सलाम पढ़कर मुल्क में खुशहाली व तरक्की की दुआ मांगी गई। संचालन मौलाना दानिश रज़ा अशरफी ने किया। महफ़िल में हाफिज अशरफ रज़ा, मो. यासिर, मो. आज़म, शाहबाज़ शरीफी, नूर आलम, अनस क़ादरी, फहीम, अब्दुल अहद, मो. उबैद, शहनवाज अहमद, नसीम अहमद आदि ने शिरकत की।