ईद-उल-फित्र 10 या 11 अप्रैल को।
सैय्यद फरहान अहमद
गोरखपुर उत्तर प्रदेश।
ईद-उल-फित्र की नमाज़ के लिए ईदगाहों व मस्जिदों में तैयारियां तेज है। रंग-रोगन हो रहा है। ईदगाह मुसलमानों के दो सबसे बड़े त्योहार ईद-उल-फित्र और ईद-उल-अज़हा की ख़ुशी मनाने के लिए है। यहीं पर दो रकात नमाज़ अदा कर बंदे अल्लाह का शुक्र अदा करते हैं और खुशियां मनाते हैं।
मौलाना महमूद रजा कादरी ने बताया कि ईदगाह का अर्थ होता है ख़ुशी की जगह या ख़ुशी का समय। यह ऐसी जगह है जहां पर बंदे दो रकात नमाज़ पढ़कर अल्लाह का शुक्र अदा करते हैं। जब बंदा 29 या 30 दिन का रोज़ा पूरा कर लेता है तो अल्लाह तआला उसे ख़ुशी मनाने का हुक्म देता है। इस्लाम धर्म के मानने वाले मंगलवार को 29वां रोज़ा पूरा करके ईद का चांद देखेंगे। अगर चांद नज़र आ गया तो बुधवार 10 अप्रैल को ईद का त्योहार मनाया जाएगा। अगर चांद नहीं दिखा तो बुधवार को 30वां रोज़ा मुकम्मल करके गुरुवार 11 अप्रैल को ईद का त्योहार मनाया जाएगा।
हाफिज रहमत अली निजामी ने बताया कि ईदगाह में ईद की नमाज़ अदा करना पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम व सहाबा किराम की सुन्नत है, इसलिए कोशिश रहे कि ईद की नमाज़ ईदगाह में ही अदा करें। ईदगाह दो ईदों के लिए ही बनाई गई है। ईद-उल-फित्र की नमाज़ के लिए जाते हुए रास्ते में अाहिस्ता से तकबीरे तशरीक ‘अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, ला इलाहा इल्लल्लाह, वल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, व लिल्लाहिल हम्द’ पढ़ी जाएगी। नमाज़ ईदगाह में जाकर पढ़ना और रास्ता बदल कर आना, पैदल जाना और रास्ते में तकबीरे तशरीक पढ़ना सुन्नत है। पैगंबरे इस्लाम ईद-उल-फित्र के दिन कुछ खाकर नमाज़ के लिए तशरीफ ले जाते। ईद को एक रास्ते से तशरीफ ले जाते और दूसरे से वापस होते।
नायब काजी मुफ़्ती मो. अजहर शम्सी ने बताया कि पांच महीनों का चांद देखना वाजिबे किफाया है शाबान, रमज़ान, शव्वाल, ज़ीक़ादा, जिलहिज्जा। पैग़ंबरे इस्लाम ने फरमाया कि महीना 29 का भी होता है और 30 का भी। रोज़ा चांद देख कर शुरु करो और चांद देख कर रोज़ा बंद कर दो। अगर आसमान साफ नहीं है तो 30 की गिनती पूरी करो।