मुस्लिम समुदाय का महान इबादत का महीना, रमजान हो गया प्रारंभ।
शहाबुद्दीन अहमद
बेतिया, बिहार
मुस्लिम समुदाय का महान इबादत का महीना,रमजान मुबारक शुरू हो रहा है, इस महीना में मुस्लिम समुदाय की महिला,पुरुष,बच्चे रोजा रखते हैं,यह महीना इबादत करने, जकात निकालने,फितराअदा करने,गरीब,मिस्कीन,मजबूर, जरूरतमंद की मदद करने का महीना कहलाता है,इस्लाम में रोजा रखने की कड़ी हिदायत है।मुसलमानों का सबसे मुबारक महीना रमजान 2 मार्च से शुरू होने जा रहा है, रमजान के महीने में मुस्लिम समुदाय के लोग रोजा रखते हैं,5 वक्त की नमाज,तराविह पढ़ते हैं,अल्लाह की इबादत करते हैं।सूरज निकलने से लेकर सूर्यास्त तक रोजा रखने वाले मुसलमान कुछ भी खाते-पीते नहीं है।इस तरह पूरे दिन उपवास रखते हैं, रोजा रखना सभी बालिग मुस्लिम महिला-औरत पर फर्ज है।इस्लामी कैलेंडर का नौवें महीने को रमजान कहा जाता है,रमजान,अरबी का शब्द,इस्लामिक महीना है,यह महीना रोजे के लिए खास किया गया है,रोजे कोअरबी भाषा में सौम कहा जाता है, सौम का मतलब,रुकना, ठहरना,खुद पर नियंत्रण रखना होता है।रमजान रहमतों,बरकतों का महीना है,इसलिए हर मुस्लिम इस पूरे महीने में अल्लाह की इबादत करता है ज़कात,फितरा एवं सदका सहित तमाम नेक काम करता है।रमजान के महीने में विशेष नमाज अदा की जाती जिसे तरावीह कहते हैं।रोजे रखने वाले मुसलमान सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त के दौरान कुछ भी नहीं खाते,न ही कुछ पीते हैं सूरज निकलने से पहले सेहरी की जाती है मतलब सुबह फजर की अजान से पहले खा सकते हैं रोजेदार सेहरी के बाद सूर्यास्त तक यानी पूरा दिन कुछ न खाते और न ही पीते,इस दौरान अल्लाह की इबादत करते हैं।इस्लामिक स्कॉलर,मुफ्ती ओसामा नदवी कहते हैं कि अल्लाह ने हर मुसलमान पर रोजा फर्ज करार दिया है,कुरान में कई जगह रोजा रखने को जरूरी बताया गया है।अल्लाह कुरान मेंअपने बंदों को हुक्म देता है कि ऐ-ईमान वालो तुम पर रोजे फर्ज किए गए हैं,ताकि तुम परहेजगार बनो,इसके अलावा हदीश-तिर्मीजि, बुखरीशरीफ,मुस्लिम, इबनेमाजा,मिस्कात तथा अबु दाउद शरीफ में भी रोजा रखने की बात कई जगह कही गई है रोजा कई बुराइयों से दूर रखता है,इंसान को नेकी की राह पर चलने की एक प्रैक्टिस है,मोहम्मद साहब रमजान के पूरे महीने रोजा रखते थे।
रमजान के महीने में जो लोग बीमार हैं,या सफर में हैं,या जिन महिलाओं को पीरियड आता है या किसी गंभीर बीमारी से ग्रस्त हैं तो उनको रोजा रखने की छूट दी गई है, मगर इसके बदले उनको अपनी रोजा का कफ्फारा देना पड़ता है।इतना ही नहीं,अगर स्वस्थ महिला,पुरुषअगर किसी बहाना बनाकर रोजा नहीं रखता है तो उसको बहुत गुनाह होता है,इसका माफी नहीं है,अगर वह पूरा जिंदगी भर रोजा रखे तो भी रमजान का एक रोजा के बराबर नहीं हो सकता है।