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Wed, 18 Jun 2025 12:20 AM

प्रख्यात शायर माजिद अली की पुस्तक कलामे महशर का विमोचन।

उर्दू के प्रोत्साहन के लिए चार दिवसीय उर्दू साहित्य सम्मेलन का आयोजन।

सेराज अहमद कुरैशी 

गोरखपुर, उत्तर प्रदेश। 

साजिद अली मेमोरियल कमेटी, गोरखपुर के तत्वावधान में साहित्य प्रेमी, महिला शिक्षा के पक्षधर एवं नगर सहकारी बैंक के पूर्व चेयरमैन, मोहम्मद हामिद अली की याद में आयोजित "चार दिवसीय उर्दू साहित्य सम्मेलन" का शुभारंभ रविवार को एम०एस०आई इण्टर कालेज, बख़्शीपुर के आडिटोरियम में हुआ। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि हकीम सैय्यद अहमद ख़ान (पूर्व निदेशक तिब यूनानी, राम मनोहर लोहिया और सफदर जंग अस्पताल, दिल्ली) को प्रशस्ति-पत्र एवं स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया गया। हकीम सैय्यद अहमद ख़ान ने कहा कि मोहम्मद हामिद अली उर्दू के सच्चे आशिक़ और शिक्षा के पैरोकार थे। वह अपने जीवन में उसूलों के पाबंद थे। उन्होंने उर्दू ज़ुबान के सुधार और बेहतरी के अमूल्य योगदान दिया है।

इस अवसर पर वरिष्ठ शायर माजिद अली "महशर"गोरखपुरी के काव्य संग्रह (मजमुआ कलाम) "कलामे महशर" का लोकार्पण किया गया।

साजिद अली मेमोरियल कमेटी के सचिव महबूब सईद हारिस ने बताया कि माजिद अली "महशर"गोरखपुरी का जन्म 1878 ईस्वी को हुआ और 66 वर्ष की आयु में 1944 में उनका स्वर्गवास हो गया। उनकी कविताओं में वाह और आह दोनों का रंग है। साधारण और सरल शब्दों में ऐसी बातें कह जाते थे कि पढ़ने और सुनने वाला आश्चर्य में पढ़ जाता। कल्पना, विचारों की पवित्रता, विषयों की चपलता और गुणवत्ता उनके के काव्य के विशेष अंग हैं। उन्होंने बताया कि उर्दू सम्मेलन का उद्देश्य मात्र यही है कि वह उर्दू भाषा जो गंगा-जमुनी संस्कृति की देन है। उर्दू ज़बान ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। 

विशिष्ठ अतिथि के रूप में पधारे अब्दुल राशिद (विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट) ने कहा कि उर्दू ज़ुबान का संबंध एक वर्ग विशेष के साथ जोड़ कर, इसके साथ न्याय नहीं किया। उन्होंने कहा कि इस प्रकार के कार्यक्रमों से उर्दू ज़ुबान को ताक़त मिलेगी।

कार्यक्रम का सफ़ल संचालन करते हुए मोहम्मद फ़र्रूख़ जमाल ने कहा कि उर्दू हिंदोस्तान कि ज़ुबान है और अगर उर्दू ज़िंदा रहेगी तो हिंदोस्तान की तहज़ीब ज़िंदा रहेगी।

वरिष्ठ साहित्यकार एवं चिकित्सक डॉ० अज़ीज़ अहमद ने कहा कि अगर उर्दू ज़ुबान कहीं बोली जाती है तो उर्दू जुबान में वो कशिश होती कि लोग ख़ुद ब ख़ुद उसकी जानिब चले आते हैं।

विशिष्ट अतिथि राजेश सिंह(सचिव मोती लाल ट्रस्ट) ने कहा कि वह एक व्यक्तित्व नही बल्कि एक संस्था थे। वो गंगा-जमुनी तहज़ीब के अगुवा थे।

प्राचार्य सेन्ट एण्ड्रयूज कालेज प्रोफेसर सीओ सैमुअल ने कहा कि ये बहुत चिंता का विषय है कि आज उर्दू विषय के विद्यार्थियों की संख्या कम हो रही है।

वरिष्ठ पत्रकार मनोज कुमार सिंह ने कहा कि आज वो समय आ चुका है कि हिंदी और उर्दू भाषा कभी अलग नहीं थी। आज के दौर में उर्दू ज़ुबान को चलन से बाहर किए जाने की कोशिश जारी, इसे रोकना होगा।

इस अवसर पर बीबी राना परमजीत कौर, तनबीर सलीम, डा. विजाहत करीम ने भी अपने विचार व्यक्त किया। 

इस मौके पर विशेष रूप से क़ाज़ी शहीरूल हसन, अब्दुल्लाह सेराज, मसरूर जमाल, डॉ० फैजान, डॉ० रूशदा, डॉ० तरन्नुम, मुनव्वर सुल्ताना, आसिफ सईद, जफर अहमद खान, नदीम उल्लाह अब्बासी, अनवर जिया, ज़मीर अहमद पयाम, अहमर इलियास, मोहम्मद असरार, डॉ० अमरनाथ जायसवाल, देशबंधु, सेराज अहमद कुरैशी, मिनहाज सिद्दीकी, मोहम्मद आजम, नवेद आलम, मुर्तुजा रहमानी, शमशुल इस्लाम, अल्ताफ हुसैन आदि साहित्यप्रेमी उपस्थित रहे।

Karunakar Ram Tripathi
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