त्याग, बलिदान,असत्य पर सत्य की जीत का पर्व मुहर्रम, बड़ी धूमधाम से हुआ संपन्न।
शहाबुद्दीन अहमद
बेतिया, बिहार।
त्याग,बलिदान,असत्य पर सत्य का विजय का पर्व मुहर्रम बड़ी धूमधाम से संपन्न हुआ। मोहर्रम के दिन इमाम हुसैन की शहादत की याद में ताजिया निकाला जाता है मुस्लिम रीति रिवाज से मोहर्रम को अलग मनाया जाता है क्योंकि यह महीना अशोक का होता है,मोहर्रम के दिन लोग इमाम हुसैन के पैगाम को लोगों तक पहुंचाते हैं,ऐसा बताया जाता है कि हुसैन ने इस्लाम और मानवता के लिए अपनी जान तक कुर्बान कर दी थी।इस वर्ष मोहर्रम का अखाड़ा निकालने के साथ, लुकार भांजने के साथ साथ तलवालबाजी करने,अस्त्र शस्त्र का प्रदर्शन करने,डीजे बजाने पर प्रशासन ने सख्ती लगा दी थी। साथ ही अखाड़ा निकालने के लिए जिला प्रशासन सेअनुमति मांगना अनिवार्य कर दिया था,मगर इसके साथ ही अपने-अपने मोहल्लों के चौक चौराहा पर युवाओं के द्वारा कर्तव्य दिखने, प्रदर्शन करने कीअनुमति थी। आज का दिन मोहर्रम के दसवीं तारीख के रूप में जाना जाता है,जिसे हम लोगों में यौमेआशुर के नाम से प्रचलन है,इस दिन मुस्लिम समाज के लोग रोजा रखते हैं,इबादत करते हैं ,गरीबों,बेसहारों में खाना वितरण करते हैं,नमाज पढ़ते हैं।मुस्लिम धर्म के अनुसार मोहर्रम का इतिहास 662 ईसवी पूर्व का है,मोहर्रम के महीने में दसवें दिन ही इस्लाम की रक्षा के लिए हजरत इमाम हुसैन ने अपने जीवन की कुर्बानी दे दी थी। इसी वजह से मोहर्रम महीने की दसवीं दिन मुहर्रम मनाया जाता है। मोहर्रम की शुरुआत भारत में 7 जुलाई से हो गई है, सऊदी अरब में भी 7 जुलाई से मोहर्रम का शुरू हुआ। इस्लामिक कैलेंडर की शुरुआत मोहर्रम महीने के पहले दिन के साथ ही होती है इसे हिजरी कैलेंडर के रूप में मनाया जाता है, इस वर्ष 1446 हिजरी मोहर्रम का पहला महीना है ,मोहर्रम पर अल्लाह के नेक बंदे की कुर्बानी के लिए याद रखा जाता है,मोहर्रम के ऊपर पैगंबर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन की शहादत हुई थी,इसलिए मोहर्रम पर मातम मनाया जाता है। मोहर्रम कर्बला की जंग को भी याद दिलाता है,ज्यादा लोगों को कर्बला की जंग की जानकारी नहीं होने के कारण कर्बला की अस्तित्व को नहीं समझ पाते हैं।नगरीय क्षेत्र में पुलिस बल की तैनाती मजिस्ट्रेट के नेतृत्व में किया गया था। पुलिस बल काफी चौकस नजर आया, जिसके वजह से किसी तरह काअप्रिय घटना की सूचना समाचार लिखे जाने तक प्राप्त नहीं हो सकी है।