न्यायालय का नोटिस लेकर दो वर्षों से थाना का दरवाजा खटखटा रही है सुप्रिया।
जिंदगी से हार रही विवाहिता।
न्यायालय के नोटिस पर पुलिस को भरोसा नहीं।
रिपोर्ट विनोद विरोधी
गया, बिहार।
जिले के बाराचट्टी थाना क्षेत्र के धानाचक निवासी किसान रामवृक्ष प्रसाद के कनिष्ठ सुपुत्री सुप्रिया कुमारी की शादी हिंदू रीति रिवाज के तहत 2004 में संपन्न हुई थी। सुप्रिया कुमारी की शादी तेतरिया ग्राम के निवासी बूल्कन महतो के पुत्र अजय कुमार के साथ हुआ था ।
शादी के बाद सुप्रिया कुमारी का रोसकदी 2010 में हुआ।उसके बाद सुप्रिया कुमारी अपने ससुराल तेतरिया रहने लगी ।उनके पति अजय कुमार प्रत्येक दिन नशा के हालात में आते थे और सुप्रिया कुमारी को गाली गलौज मारपीट करते थे।किसी न किसी तरह सुप्रिया कुमारी अपने ससुराल में 6 वर्ष कठिन की जिंदगी काटी ।उसके बाद सुप्रिया कुमारी के ससुराल वालों के द्वारा उसके शरीर पर किरासन तेल डालकर आग के हवाले करना चाहते थे। इस दौरान सुप्रिया कुमारी ने जान बचाते हुए बाराचट्टी थाना पहुंची और अपना शिकायत की, लेकिन तत्कालीन थानाध्यक्ष ने विवाहिता की एक भी नहीं सुनी। उसके बाद सुप्रिया कुमारी अपने मायके चली आई और अपने फैसले के लिए समाज से गुहार लगाई। लेकिन समाज ने सुप्रिया कुमारी को न्याय दिलाने में भी असफल रही। उसके बाद सुप्रिया कुमारी न्यायालय का दरवाजा खटखटाई। 2019 में सुप्रीम कुमारी को न्यायालय के द्वारा न्याय की रास्ता साफ हुआ और सुप्रिया के पतिअजय के उपर न्यायालय के द्वारा परिवार न्यायालय के द्वारा दहेज प्रथा उन्मूलन के तहत कानूनी कार्रवाई की गई ।उसके बाद आज तक न्यायालय के द्वारा तीन बार वारंट नोटिस निकल चुकी हैं। न्यायालय के द्वारा नोटिस स्थानीय बाराचट्टी थाना कई बार पहुंची और सुप्रिया कुमारी अपने हाथों के द्वारा थानाध्यक्ष को भी नोटिस थमायी। उसके बावजूद भी थाना के द्वारा आरोपी अजय कुमार की गिरफ्तारी नहीं हुई । पीड़िता सुप्रिया कुमारी अपने जिंदगी के न्याय के लिए कई बार थाने जाकर दरवाजा खटखटाई। आरोपी पति को गिरफ्तार करें लेकिन थानाध्यक्ष द्वारा न्यायालय की नोटिस को अनदेखी करते हुए दिन पर दिन गुजरते जा रहे हैं । सुप्रिया कुमारी को बेचैनी बढ़ती जा रही है ।सुप्रिया कुमारी अपनी जिंदगी का सफर आधा से ज्यादा कट चुकी है लेकिन अभी तक न्याय नहीं मिल पाई हैं। आखिर पुलिस प्रशासन पर कैसे विश्वास किया जा सके? न्याय के लिए बैठे पुलिस हाथ पर हाथ करके बैठी हुई है ।थाने के दरवाजे खटखटा रहे हैं लेकिन थानाध्यक्ष की कान पर जूं तक रेंग नहीं रहा।