मकर संक्रांति विशेष....
शहाबुद्दीन अहमद
बेतिया,बिहार।
मकर संक्रांति सूर्य की उपासना का त्यौहार तो है ही,साथ ही योग,स्वास्थ्य एवं प्रकृति के प्रति आस्था को व्यक्त करने का बहु आयामी सांस्कृतिक आयोजन भी है। यह देश भर में कहीं लोहड़ी, पोंगल,बिहू या हल्दी कुमकुम और गुड़ी पड़वा जैसे नाम से मनाया जाता है। इस दिन प्रकृति के समस्त स्थितियां प्राणी जगत के लिए सर्वथा अनुकूल होती है,इसलिए यह प्रकृति के प्रति कृतज्ञता, आभार प्रकट करने का श्रेष्ठ काल है,यह हमारे जीवन को आलोकित रखने के लिए हमें नया बल,नई ऊर्जा से भर देता है,इसलिए सदियों से हम इस ऊर्जा के उत्सव के रूप में मानतेआए हैं,यह हमें उत्तरायण हुए सूर्य देव की दिव्या ऊष्मा को अपने भीतर समेट लेने का संदेश भी देता है
भारतीय संस्कृति में मानवीय जीवन चक्र को गतिशील रखने में सूरज की उपासना का विशेष स्थान है,संक्रांति का शाब्दिक अर्थ है,संचार या गति।सर्दियों में आलसये में झकड़ा शरीर सूर्य की ऊष्मा से गतिशील हो जाता है,इसलिए मकर संक्रांति को सूर्य की सानिध्य का त्योहार कहना कहीं से गलत नहीं होगा। आधुनिक भाग दौड़ती जिंदगी में घरों,करो और दफ्तरों में जीवन का 90% गुजरने वाला समय सूर्य के सीधे संपर्क में आने नहीं देता है,इस कारण कई तरह की शारीरिक और मानसिक समस्याएं उत्पन्न होने लगते हैं।मकर संक्रांति को सूर्य की स्वागत का उत्सव भी कहते हैं,इसके बाद ही सारे त्यौहार प्रारंभ होते हैं,जाड़े की तीव्रता के बाद सूरज की रश्मि खुसकारी होती है,यह फसलों में पक जाने की खुशी में गुड और तिल का प्रसाद खाकर खुद को निरोग रखने का समय है,साथ ही शीत के दिनों से अब तक जो गरिष्ट भोजन कहते आए हैं,उसे त्याग कर खिचड़ी के रूप में सुपाच्य भोजन करने का समय है,जो हमें नई ऋतु के लिए तैयार करता है।मकर संक्रांति के उपलक्ष पर लोगों में तिल,गुड़, खिचड़ी, दही चूड़ा,लाई का प्रयोग करनाआम बात बन गया है,लोग इस अवसर पर भोज काआयोजन करते हैं, इसके साथी गरीबों,दीन दुखियों में दान पुण्य का काम भी होता है।स्नान ध्यान करने के बाद विभिन्न प्रकार के व्यंजनों का स्वादिष्ट भोजन करते हैं।इसीअवसर पर लोग पतंग उड़ाने का भी एकअपना महत्व बन जाता है। बच्चे,बूढ़े,जवान सभी पतंग उड़ा कर मकर संक्रांति के अवसर पर लाभान्वित होते हैं।