नूरी मियां की रूहानियत और आला हज़रत के फैज़े तालीम व तरबियत से मुफ्ती-ए-आज़म बने ताजदारे अहले सुन्नत।
ताजदारे एहले सुन्नत इनामी मुक़ाबले में मंज़रे इस्लाम में हुआ नव वर्ष की डायरियों का वितरण।
बरेली, उत्तर प्रदेश।
भारत व नेपाल उलेमा इत्तेहाद कौन्सिल मंज़र-ए-इस्लाम दरगाह आला हजरत की ओर से "ताजादारे अहले-सुन्नत इनामी मुकाबले" का आयोजन दरगाह प्रमुख हज़रत सुब्हानी मियॉ की सरपरस्ती व सज्जादानशीन हज़रत मुफ्ती अहसन मियॉ की सदारत में किया गया। जिस में आला हज़रत के साहिबजादे मुफ्ती-ए-आज़म मुफ्ती मोहम्मद मुस्तफा रज़ा खाॅ की दीनी,मसलकी,इल्मी और रूहानी खिदमात और उनकी धार्मिक जीवनी से संबंधित प्रश्न किये गए थे।
इस संबंध में दरगाह के मीडिया प्रभारी नासिर कुरैशी ने बताया कि आज नयी नस्ल को अपने बुज़ुर्गों के सेवा भाव उनके मानवतावाद और उनकी धार्मिक जिन्दगी से अवगत कराना बहुत जरुरी है ताकि यह नई नस्ल अपने बुजुर्गों के नक़्शे क़दम पर चल कर अपने मज़हबो मसलक,अपने मुल्क व मिल्लत और अपने समाज व मानवता की सेवा करने का अपने अंदर भाव पैदा कर सके। प्रतियोगिता कार्यक्रम में नई नस्ल के उलमा और मस्जिदों के इमामों को संबोधित करते हुए मंज़र-ए-इस्लाम के वरिष्ठ शिक्षक मुफ्ती मोहम्मद सलीम बरेलवी ने कहा कि आज हमारा समाज बहुत खराब माहौल से गुज़र रहा है जैसे शराब, जुआ,सूदखोरी और नफ़रत आम हो चुकी है। ऐसे में हमें अपने बुजुर्गों,पीर वालियों,सूफियाए किराम और परहेज़गार नेक उलेमा के नक़्शे क़दम पर चलते हुए समाजिक बुराइयों के विरुद्ध लड़ाई लड़नी है। आपसी सौहार्द को बढ़ावा देकर मुफ्ती-ए-आज़म ने जिस तरह खुलूस के साथ मज़हब व मिल्लत,मसलके आला हज़रत और मुल्क में अमन व शान्ति की स्थापना के लिए रात व दिन मेहनत की थी वैसे ही हमें भी करना होगी। मुफ्ती-ए-आज़म ऐसे ही घर में बैठे बैठे,चन्द मुरीदों या घर के कुछ अपने लोगो के मनगढंत तरीके से बनाए "ताजदारे अहले-सुन्नत" नहीं बने बल्कि उनको "ताजदारे अहले सुन्नत" उनके पीरो मुरशिद सरकार नूरी मियाॅ मारहरवी के फैज़ाने नज़र और मुजद्दिदे इस्लाम आला हज़रत की बेमिसाल इल्मी व रूहानी तरबियत और अनोखी शिक्षा व दीक्षा ने बनाया है। उनको "ताजदारे अहले-सुन्नत" की यह उपाधि बक़लम खुद नही मिल गई बल्कि पूरी जिंदगी उन्होने सामाजिक बुराइयों के खिलाफ जो लड़ाई लड़ी उसकी वजह से सुन्नी,सूफी,खानक़ाही समाज की लाखों जनता,अवाम, खवास,उलमा,मशाइख और अहले खानकाह ने उनको अपने सर का ताज माना और इस कारण उनको "ताजदारे अहले-सुन्नत" की यह उपाधि मिली। *कार्यक्रम मे बरेली व पीलीभीत के सौ से अधिक इमामों को "तजदारे अहले-सुन्नत" वार्षिक डायरी उपहार के रुप में भेंट की गई। इस डायरी में प्यार व मोहब्बत,इल्म हासिल करने मानवतावाद व शान्तिवाद को प्रोत्साहित करने वाली क़ुरआन की आयतें,पैगम्बरे ईस्लाम के वक्तव्य और सूफियाए किराम के शान्तिवाद को बढावा देने वाले पैग़ाम लिखे हुए हैं। सब से अंत में मुल्क में अमन-चैन की दुआ की गई।