मुस्लिम समुदाय का पूर्व,जा शबे-ए-बरात, इबादतों, गुनाहों से माफी मांगने की रात
शहाबुद्दीन अहमद
बेतिया, बिहार
मुस्लिम समुदाय का पर्व शबे-ए-बरआत इस्लाम में एक बहुत ही मुक़द्दस रात मानी जाती है।यह रात तौबा, इबादत,अल्लाह से मग़फिरत माँगने की रात होती है।इस रात कोअल्लाह तआलाअपनी रहमत के दरवाज़े खोल देता है,अपने बंदों की दुआओं को क़बूल करता है।यह रात गुनाहों की माफी की रात होती है,इस रात में जिक्र,मरने जीने तक़दीर के फैसले किए जाते हैं।यह रात अल्लाह की रहमत को हासिल करने का बेहतरीन मौका होती है।हदीसों मेंआता है कि इस रात में अल्लाह अपने बंदों को जहन्नम से मुक्त करता है।नमाज़, तिलावत, नफ्ल नमाज़ें पढ़ें,कुरआन की तिलावत करें।
तौबा,इसतेग़फार करें,अपने गुनाहों की माफी माँगें,अल्लाह से तौबा करें।
दुआ:अपने लिए,अपने घरवालों और पूरे उम्मत के लिए दुआ करें।
कब्रिस्तान की ज़ियारत अगर मुमकिन हो तो अपने मरहूम रिश्तेदारों की कब्रों पर जाकर उनके लिए दुआ करें।
अगले दिन रोज़ा रखने की भी फज़ीलत है,अगर हो सके तो इस सुन्नत को अपनाएँ।
इस रात को सिर्फ़ हलवे या खाने-पीने तक सीमित न करें, बल्किअसली मकसद इबादत और तौबा होनी चाहिए।आतिशबाजी,ग़लत कामों से बचें क्योंकि यह इस्लाम में जायज़ नहीं।किसी भी बेबुनियाद रस्म को अपनाने से पहले उसकी सही जानकारी लें।अल्लाह हमें इस रात की बरकतों से मालामाल करे, हमारे सभी गुनाहों को माफ करे। इसअवसर पर शहरी और ग्रामीण क्षेत्र के मस्जिदों, इबादतग़ाहों,कब्रिस्तानों,की साफ सफाई,रंग रोगन, बिजली बत्ती से सजावट की
जाती है, इसकेअलावा मस्जिद कब्रिस्तान जाने वाले रास्तों को भी झंडियों,बिजली बतिया से सजाई जाती है,ताकि लोग रोशनी में आसानी से आ जा सके।