समर्पण,त्याग,बलिदान का महान पर्व इदु-उल-अजहा, 17/18/19 जून को मनाया जाएगा ।
शहाबुद्दीन अहमद
बेतिया ,बिहार।
मुस्लिम समुदाय का यह महान पर्व,त्याग,बलिदान समर्पण की भावना से पूरे विश्व में मनाया जाता है l हजरत इब्राहिम अo सo की सुन्नत कीअदायगी हर इस्लाम धर्मलंबियों के लिए अनिवार्य है,यह त्यौहार इंसान को कठिन परीक्षा के समय में धैर्य के साथ रहना,विवेक से कदम उठाना,ईश्वर के प्रति समर्पित रहने का संदेश देता है,साथ ही साथ सामाजिक सरोकार का भी पैगाम देता है l मानवविकास के इतिहास के अवलोकन से पता चलता है कि दुनिया में जितने भी मजहब हैं,सभी मेंकुर्बानी, (बलि)की प्रथा किसी न किसी रूप में प्रचलित है,जहां तक मजहबे इस्लाम के अंदर कुर्बानी का सवाल है,तो कुरान और हदीस दोनों में कुर्बानी करने की हिदायत दी गई है l कुरानशरीफ में अल्लाह ने फरमाया है कि नमाज अदा कीजिए और अपने रब के लिए कुर्बानी कीजिए l आखरी पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बताया था कि ईद -उल-अजहा जिसेआम बोलचाल में बकरा- ईद कहा जाता है,इस्लाम धर्म के मानने वालों के लिए एक अहम त्यौहार है,इसे मनाने के पीछे एक बड़ा पवित्र इतिहास है,यह इस्लाम धर्म के उद्धव के पूर्व से प्रचलित है,हजरत इब्राहिम अoसoको ईश्वर ने स्वप्न दिखाया कि अपनी सबसे अजीज चीजों को कुर्बानी दो, हजरत इब्राहिम,जिन्हें खालिललूलाह कहा जाता है,उन्होंने अपने इस स्वप्न के आलोक मेंअपनी पसंदीदा चीजों को कुर्बानी दी,हुजूर सल्लल्लाहुअलैहि वसल्लम ने आखिरी हज के खुतबे में मेंअरफात के मैदान में फरमाया था,अय लोगो हर साल हर घर के लोगों पर कुर्बानी जरूरी है l हजरत इब्राहिम अoसओ, जिनकी उम्र 85 वर्ष की थी,इसी उम्र में उनको औलाद हुई थी,उस समय की सबसे प्यारी चीज में उनके बेटे हजरत इस्माइल अoसoको कुर्बानी करने के लिए तैयार हो गए,जब हजरत इस्माइल की गर्दन पर तेज धारदार छुड़ी कुर्बानी करने के लिए चलने लगी तो ईश्वर ने हजरत इब्राहिम के समर्पण को कबूल करते हुए हजरत इस्माइल की जगह एक दुंबा रख दिया,इस तरह उसकी कुर्बानी हो गई l इस्लाम धर्म के मानने वालों में इसी इब्राहिम की इसी सुन्नत को लेकर ईद -उल -अजहा का त्यौहार मनाया जाता है,ईद -उल -अजहा का संदेश यह है कि मनुष्य ईश्वर की कृति है,इसके पास जो कुछ भी धन दौलत है,वह सभी ईश्वर की देन है इंसान को हमेशाअल्लाह के प्रति समर्पित रहना चाहिए, क्योंकिअल्लाह को बंदे का समर्पण ही सबसेअधिक पसंद है,यही सबसे बड़ी इबादत है l ईद -उल - अजहा हर साल इस्लामी कैलेंडर के अनुसार, जिलहिजिजा के महीने की दसवीं से 12वीं तारीख अर्थात तीन दिनों तक कुर्बानी दी जा सकती है,लेकिन ईद -उल -अजहा की नमाज मात्र एक दिन दसवीं जिलहिज्जा को ही पढ़ी जाती है l कुर्बानी के जानवर के लिए भी इस्लाम धर्म ने कई शर्ते रखी हैं, जानवर हलाल,चौपाया,बीमार नहीं हो,अपंग नहीं हो, देखने में भी सेहतमंद और तंदुरुस्त हो l ज्ञात हो कि कुर्बानी सभी मुसलमान पर फर्ज नहीं है, जो आर्थिक दृष्टिकोण से शब्ल है,उन्हें ही कुर्बानी देने का हुक्म है,कुर्बानी के जानवर का मांस भी केवल कुर्बानी देने वाली के लिए नहीं होता,बल्कि जानवर के पूरा मांस को तीन हिस्सों में बांटा जाता है,एक हिस्सा जिस व्यक्ति के नेअपने पैसे से कुर्बानी दी है,उसके लिए है,दूसरा हिस्सा निर्धन लोगों के बीच बांटने के लिए है,और तीसरा हिस्सा अपने सगे संबंधियों और मित्रों के बीच वितरण करने का आदेश है, अर्थात कुर्बानी ईश्वर के प्रति समर्पण एवं सामाजिक सरोकार का भी पाठ पढ़ाता है