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Wed, 18 Jun 2025 10:33 AM
धार्मिक / Mar 22, 2024

पवित्र रमजान के दूसरे जुम्मे की नमाज हआ अदा, फित्रा ₹50/= व्यक्ति,2.5% जकात देने का हुआ ऐलान।

शहाबुद्दीन अहमद

बेतिया,पश्चिमी चंपारण, बिहार।

पवित्र रमजान का दूसरा जुम्मा अपार भीड़ के साथ सभी ने उल्लासपूर्वकअदा किया,इस मौके पर सभी मस्जिदों के इमामो ने प्रतिवर्ष के भांति इस वर्ष 50/=प्रति व्यक्ति के दर से फितरा के साथ में 2.5% जकात अदा करने का ऐलान किया गया।मुस्लिम समुदाय कीमहिलाएं,पुरुष,बच्चे,बच्चियां रोजा रखते हैं,जो धार्मिक मान्यताओं केअनुसार हर व्यक्ति पर रोजा रखना फर्ज है,एक महीना का रोजा रखने के बाद ईद का त्यौहार आता है,यह त्योहार खुशियों का त्योहार कहलाता है,इसमें सभीअमीर गरीब,छोटा बड़ा पुरुष,महिला,बच्चे बच्चियों सभी नए-नए कपड़ों के साथ ईद की खुशी मनाते हैं,मीठी मीठी सेवइयां,विभिन्न प्रकार के व्यंजनों का लुत्फ उठाते हैं,अपने पड़ोसी,इष्ट मित्र,सगे संबंधियों के साथ मिलजुलकर ईद की खुशियां बांटते हैं,सबसे गले मिलकर ईद की खुशी की मुबारकबाद देते हैं,मीठी-मीठी सेवइयां,विभिन्न प्रकार के व्यंजनो को खिलाते हैं।ईद का त्यौहार की खुशी में सबों को शामिल करना होता है,विशेष उन गरीब लोगों के प्रति ज्यादा संवेदनशील होना रहता पड़ता है जिस तरह सभी लोग ईद की खुशियां मनाते हैं,नए-नए कपड़ों और विभिन्न प्रकार के व्यंजनों का लुत्फ उठाते हैं, उसी तरह इसी समुदाय में जो निम्न वर्गआय के गरीब,वृद्ध असहाय लोग हैं,जो नए-नए कपड़ों पहनने की क्षमता नहीं रखते हैं,जो किसी आर्थिक तंगी से जूझते हैं,उनके सामने बहुत बड़ी समस्या उत्पन्न हो जाती है कि अपने बाल बच्चों को ईद की खुशी में नए-नए कपड़ों और अन्य सामानों की कहां से पूर्ति की जाए,इसी कमी को पूरा करने के लिए मुस्लिम समुदाय के लोगों में ईद के मौके पर फितरा देने की परंपरा चली आ रही है,इसकी रकम विभिन्न वर्षो में विभिन्न होते हैं,यह राशि मार्केट की महंगाई पर निर्भर करती है।मुस्लिम समुदाय के एक परिवार में जितने भी सदस्य होते हैं,प्रति महिला,पुरुष,बच्चे बच्चियों,नौकरानी को मिलाकर घोषित राशि के अनुसार फित्रा अदा करना पड़ता है,इस राशि को जो लाचार,गरीब,असहाय, दुखिया, वृद्ध,बीमार होते हैं उनको मदद किया जाता है, ताकि वह भीअपने परिवार के लोगों के साथ नए-नए कपड़े,जूता चप्पल,खाने पीने का सामान कोआसानी से खरीद कर ईद की खुशी मना सके,उनको यह एहसास नहीं हो कि हम गरीब,लाचार,वृद्ध, असहाय हैं,हम सक्षम नहीं हैं कि मेरे परिवार के बाल बच्चे ईद की खुशी में शामिल हो सकेंगे।इस फितरा की रकम जकात की रकम को अपने आय का 2.5% निकालकर गरीबों,वृद्ध,लाचारों को सहयोग की जाती है,साथ ही मुस्लिम समुदाय में जो मदरसे,मस्जिद,मकतब, खानकाह वगैरा होते हैं,उनकी सहायता की जाती है।मुस्लिम समुदायों के लोगों मेंअपनी आय का ढाई प्रतिशत जकात के रूप में राशि निकाली जाती है,जो गरीबों,लाचारों,असहाय, वृद्ध, विकलांग,जरूरतमंदों को दी जाती है,इसमें मस्जिद, मदरसा,मकतब को भी उनके पढ़ने वाले बच्चों बच्चियों के खाने पीने,रहने सहने,भवन निर्माण, एवन अन्य आवश्यक कार्यों के लिए सहायता के रूप में दी जाती है।

Karunakar Ram Tripathi
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